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प्रतिदिन108 बार महा मृत्युंजय मंत्र के जाप से खत्म होगी शनि की साढ़ेसाती ख़त्म

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, ज्योतिष न्यूज़ : महामृत्युंजय मंत्र का जाप भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है और इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है। मान्यता है कि अगर किसी के घर में कोई गंभीर रूप से बीमार है तो रोजाना 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से शीघ्र आराम मिलता है। इसके साथ ही अगर महाकाल की पूजा के साथ इस मंत्र का जाप रोजाना किया जाए तो व्यक्ति से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आज हम आपको इस चमत्कारी मंत्र की उत्पत्ति और इससे जुड़ी कथा के बारे में बता रहे हैं…
किस वजह से दुखी थे मृकंड ऋषि?
भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृकंड निःसंतान होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उनके भाग्य में संतान को शामिल नहीं किया था। मृकंड ने सोचा कि अगर महादेव संसार के सारे नियम बदल सकते हैं तो क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्न करके इस नियम को भी बदल दिया जाए। तब ऋषि मृकंड ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। भोलेनाथ मृकंड की तपस्या का कारण जानते थे इसलिए वे तुरंत प्रकट नहीं हुए, लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोलेबाबा को झुकना पड़ा। महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि से कहा, मैं विधि का विधान बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं, लेकिन इस वरदान के साथ सुख-दुख भी होंगे।
ऐसे थे मृकण्ड ऋषि के पुत्र
भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को मार्कण्डेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह अल्पायु, गुणवान बालक है। इसकी आयु मात्र 12 वर्ष है। ऋषि की खुशी दुख में बदल गई। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि भगवान की कृपा से बालक सुरक्षित रहेगा। भाग्य बदलना उनके लिए आसान काम है।
मार्कण्डेय की मां चिंतित हो गईं
जब मार्कण्डेय बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की मां बालक की बढ़ती उम्र को लेकर चिंतित थीं। उन्होंने मार्कण्डेय को उसकी अल्पायु के बारे में बताया। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता की खुशी के लिए वह भगवान शिव से लंबी आयु मांगेंगे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया था। बारह वर्ष बीत गए।
मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की
मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका निरंतर जाप करने लगे।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

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जब समय पूरा हुआ तो यमदूत उसे लेने आए। जब ​​यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की पूजा कर रहा है तो वे कुछ देर तक प्रतीक्षा करने लगे। मार्कण्डेय ने निरंतर जाप का व्रत ले रखा था। वे बिना रुके जाप करते रहे। यमदूतों में मार्कण्डेय को छूने का साहस नहीं हुआ और वे लौट गए। उन्होंने यमराज से कहा कि उनमें बालक तक पहुंचने का साहस नहीं है। इस पर यमराज ने कहा कि मैं स्वयं मृकण्ड के पुत्र को लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंचे। बालक मार्कण्डेय ने जब यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। जब यमराज ने बालक को शिवलिंग से दूर ले जाने का प्रयास किया तो मंदिर तेज गर्जना के साथ हिलने लगा। तेज प्रकाश से यमराज की आंखें चौंधिया गईं।
शिवलिंग से प्रकट हुए महाकाल
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हुए। उन्होंने हाथ में त्रिशूल लेकर यमराज को चेतावनी दी और पूछा कि आपने ध्यान में लीन मेरे भक्त को खींचने का साहस कैसे किया..? यमराज महाकाल जोर-जोर से कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आपका सेवक हूं। आपने ही मुझे प्राण लेने का क्रूर कार्य सौंपा है। भगवान का क्रोध कुछ कम हुआ और उन्होंने कहा, ‘मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने उसे लंबी आयु का आशीर्वाद दिया है। आप इसे नहीं ले जा सकते।’ यम ने कहा- प्रभु आपका आदेश सर्वोच्च है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वालों को कष्ट नहीं दूंगा। मार्कण्डेय जी महाकाल की कृपा से दीर्घायु हुए, अतः उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त कर देता है।

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