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दक्षिण भारत के स्वर्णिम इतिहास का जीताजागता प्रमाण महाबलीपुरम, महाभारत काल से जुड़े हैं ‘तार’

महाबलीपुरम तमिलनाडु जिले में बसा एक ऐतिहासिक नगर है। यह कांचीपुरन शहर में बसा है। चेन्नई से करीब 55 किमी दूर स्थित महाबलीपुरम अपने विशालकाय मदिरों और समुदी तटों के लिए मशहूर है। यहां के स्मारक और वास्तुकला ऐतिहासिक होने के साथ ही बेहत खूबसूरत भी है। यहां मंदिरों की वास्तुकला से मन मोहित हुए बिना नहीं रह सकता।

महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर बसा एक शहर है। इसके इतिहास की बात की करेंगे तो इसकी स्थापना 7वीं सदी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने की थी। राजा नरसिंह को मामल्ल के नाम से भी जाना जाता था। इन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम महाबलीपुरम रखा गया। महाबलीपुरम को एक और नाम मामल्लपुरम से भी जाना जाता है।

महाबलीपुरम के पास एक पहाड़ी है, जिसके ऊपर एक दीपस्तम्भ बना हुआ है। कहा जाता है कि ये दीपस्तम्भ समुद्री यात्राओं को सुरक्षित बनाने के लिए बनवाया गया था। यहां पांच रथ और एकाश्म मंदिर हैं। कहा जाता है कि इससे पहले यहां सात मंदिर थे, पांच रथ और एकाश्म मंदिर को इन्हीं सात मंदिरों का अवशेष बताया जाता है। इन सात मंदिरों की वजह से महाबलीपुरम को सप्तगोडा भी कहा जाता है। महाबलीपुरम के अंदर महाभारत काल से जुड़े कई प्रसंगों का जिक्र किया गया है। यहां इससे जुड़ी कलाकृतियों का भी निर्माण किया गया है।

महाबलीपुरम जाना चाहें तो याद रखें कि अक्टूबर से जनवरी तक का समय यहां आने के लिए उपयुक्त है। मई से जुलाई तक तो यहां बहुत अधिक गर्मी पड़ती है और तापमान 42 डिग्री सेंटीग्रेड तक जा पहुंचता है। महाबलीपुरम तक आने के लिए आपको चेन्नई से बस और टैक्सियां भी आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी और दक्षिण भारत के सभी शहरों से यहां तक बस सेवा भी उपलब्ध है।

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महाबलीपुरम में ठहरने की भी उचित व्यवस्था है। यहां निजी होटलों के अलावा सरकारी गेस्ट हाउस और लॉज इत्यादि भी हैं जहां आसानी से उचित मूल्य में आपके ठहरने की व्यवस्था हो सकती है। ठहरने की व्यवस्था यहां मौजूद दलालों की मदद लिए बगैर यदि स्वयं ही करें तो ठीक रहेगा। आप चाहें तो होटल में अपने ठहरने की व्यवस्था पहले से ही बुकिंग कर भी करवा सकते हैं।