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छत्तीसगढ़ में मोदी और शाह की प्रतिष्ठा दांव पर

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम,छत्तीसगढ़। के आदिवासी बहुल इलाके बस्तर से 12 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इसलिए भाजपा ने अपनी परिवर्तन यात्रा की शुरूआत बस्तर से ही की थी। तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी भी जगदलपुर पहुंचे और परियोजनाओं का लोकार्पण शिलान्यास करने के साथ ही एक रैली को भी संबोधित किया।

तीन महीने में प्रधानमंत्री मोदी का यह चौथा छत्तीसगढ़ दौरा था। इसके पूर्व मोदी 30 सितंबर को बिलासपुर में भाजपा की परिवर्तन यात्रा का समापन करने और उससे पहले 14 सितंबर को रायगढ़ गये थे।
अपनी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उसकी नाकामियों को गिनाया। छत्तीसगढ़ में जहां अब तक के सर्वे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाती दिख रही है, वहां मोदी का हमलावर होना भाजपा के लिए जरूरी भी है। असल में भाजपा हाईकमान मध्य प्रदेश में सरकार बचाने और राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को हटाने से ज्यादा बड़ी चुनौती छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने को मान रही है। छत्तीसगढ़ को अमित शाह और मोदी ने चुनौती के रूप में लिया है और इस छोटे राज्य के बड़े निर्णय खुद दिल्ली में ले रहे हैं।
भाजपा 21 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची 17 अगस्त को ही जारी कर चुकी है। उसके बाद से लगातार भाजपा संगठन बची हुई 69 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम पर मंथन कर र​हा है। एक अक्टूबर को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने​दिल्ली में छत्तीसगढ़ के नेताओं के साथ बैठक की और उसके बाद शाम को केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ की दूसरी सूची पर मुहर लग गई है। यह सूची कभी भी जारी हो सकती है।
छत्तीसगढ़ को लेकर अमित शाह ने विशेष रणनीति बनायी है। देश भर से 185 से ज्यादा भाजपा नेता मतदान के एक दिन पहले तक छत्तीसगढ़ में डेरा डाले रहेंगे। हर संभाग के लिए एक प्रभारी बनाया गया है। हर जिले के लिए भी एक प्रभारी बनाया गया है और हर विधानसभा सीट के लिए दो-दो प्रभारी भी नियुक्त किए गए हैं। विस्तारक भी जमीनी स्तर पर काम देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ में मौजूद भाजपा के ये सभी नेता उड़ीसा, बिहार और झांरखड से हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 39 सीटें आरक्षित है। जिसमें से 29 सीटें एसटी वर्ग के लिए और 10 सीटे एससी वर्ग के लिए हैं। बाकी 51 सीटें सामान्य वर्ग के लिए हैं। सीटों के हिसाब से देखें तो रायपुर संभाग से 20 सीटें, बिलासपुर संभाग से 24 सीटें, सरगुजा संभाग से 14 सीटें, दुर्ग संभाग से 20 सीटें और बस्तर संभाग से 12 सीटें आती हैं। इन पांच संभागों की जिम्मेदारी पांच बड़े नेताओं को दी गयी है।
भाजपा मध्यप्रदेश की तर्ज पर जहां कोई विकल्प न हो वहां सांसद को उतारने की रणनीति पर छत्तीसगढ़ में भी काम कर रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरने के लिए पाटन से दुर्ग के सांसद विजय बघेल को भाजपा ने पहले ही मैदान में उतार दिया है। भूपेश बघेल और विजय बघेल पहले भी तीन बार आपस में टकरा चुके हैं जिसमें दो बार भूपेश बघेल और एक बार विजय बघेल जीत चुके हैं।
भाजपा बिलासपुर संभाग पर विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा संभाग बिलासपुर ही है। 8 जिलों के संभाग में यहां छत्तीसगढ़ की सबसे ज्यादा 24 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 14 पर कांग्रेस, 7 पर भाजपा, 2 पर बसपा और एक सीट पर जनता कांग्रेस का कब्जा है। प्रदेश की 11 लोकसभा सीट में से चार लोकसभा सीट अकेले बिलासपुर संभाग से आती हैं। इसमें से तीन लोकसभा सीट पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और बिलासपुर से सांसद अरूण साव इस क्षेत्र के नेता हैं। बिलासपुर संभाग की लगभग सभी सीटों पर अनुसूचित जाति का बड़ा वोट बैक है। छत्तीसगढ़ की 10 एससी सीटों में से 4 सीटें बिलासपुर संभाग से ही हैं। यही वजह है कि बसपा के दो विधायक यहां से चुने गए है। इसलिए कांग्रेस दलित और आदिवासी वोट बैक को साधने के लिए अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की जांजगीर में सभा करा चुकी है।
दुर्ग संभाग की बात करें तो कभी भाजपा का गढ़ रहे दुर्ग संभाग में पिछले 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 20 विधानसभा सीटों में से 18 सीटें जीत ली थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दुर्ग संभाग की पाटन विधानसभा सीट से विधायक हैं। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू दुर्ग ग्रामीण से विधायक हैं। राज्य सरकार के 12 मे से 6 मंत्री दुर्ग संभाग से हैं। ऐसे में यहां अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दुर्ग सांसद और घोषणा समिति के अध्यक्ष विजय बघेल को पहली सूची में पाटन से टिकट दे दिया गया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को पार्टी फिर से राजनांदगांव से टिकट दे सकती है।
इसी तरह राज्यसभा सांसद सरोज पांडे को भी भाजपा विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है। सवर्णों और महिलाओं को देखकर सरोज पांडे को दुर्ग या वैशाली से मैदान में उतारा जा सकता है। सरोज पांडे दुर्ग की महापौर रहते हुए वैशाली नगर से विधायक का चुनाव जीती थीं और फिर दुर्ग से सांसद भी बन गई थी। वो एक साथ महापौर, विधायक और सांसद बनने वाली पहली नेता बनी थी। जबकि कांग्रेस की ओर से भूपेश बघेल के सामने इस संभाग में अपने प्रदर्शन को दोहराने की ​जिम्मेदारी होगी।

2018 के विधानसभा में सरगुजा संभाग से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। सरगुजा संभाग की 14 की 14 विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीती थी। सरगुजा से कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव हैं। भाजपा के इस क्षेत्र के आदिवासी नेता नंद कुमार साय का कांग्रेस का दामन थामने से भाजपा की जमीन कमजोर हुई है। सरगुजा लोकसभा सीट से सांसद और मोदी कैबिनेट में आदिवासी मामलों की राज्य मंत्री रेणुका सिंह को भाजपा विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है। रेणुका सिंह दो बार विधायक रह चुकी हैं। वो केन्द्र में छत्तीसगढ़ से अकेली मंत्री है। उनकी तेज तर्रार आदिवासी नेता वाली छवि है।
बिलासपुर संभाग के बाद सबसे ज्यादा सीटें रायपुर संभाग से आती हैं। इस संभाग में 20 सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां की 20 सीटों में से कांग्रेस ने 14, भाजपा ने 5 तथा अजीत जोगी कांग्रेस ने एक जीती थी। जातिगत समीकरण की बात करें तो रायपुर संभाग में 32 फीसदी मतदाता अनुसूचित जनजाति से हैं, 13 फीसदी अनुसूचित जाति से हैं और 47 फीसदी ओबीसी वर्ग के मतदाता हैं। वहीं बस्तर संभाग से 12 सीटे आती हैं। फिलहाल कांग्रेस के पास 8 सीटें और भाजपा के पास 4 सीटें है।
ऐसे में छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनाव को मोदी शाह की जोड़ी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। छत्तीसगढ़ को लेकर सभी फैसले दिल्ली से हो रहे हैं। हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान को लेकर भी सभी फैसले दिल्ली से हो रहे हैं लेकिन 2018 में छत्तीसगढ़ में हुई अपमानजनक हार को मोदी और शाह भूले नही हैं। इस कारण छत्तीसगढ़ की एक-एक सीटों पर मोदी और शाह की पैनी नजर है।
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