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Supreme Court ने कहा- ट्यूशन फीस सस्ती होनी चाहिए, प्रॉफिट कमाने का बिजनेस नहीं है एजुकेशन

Supreme Court, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि शिक्षा लाभ कमाने का बिजनेस नहीं है और ट्यूशन फीस हमेशा चुकाने लायक होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, आंध्र प्रदेश सरकार ने फीस को 24 लाख रुपये प्रति वर्ष बढ़ाने का निर्णय है, जो निर्धारित शुल्क से सात गुना अधिक है। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने सोमवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।

इस मामले की सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एमबीबीएस छात्रों द्वारा देय शिक्षण शुल्क को बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया गया था। आंध्र प्रदेश सरकार ने 6 सितंबर 2017 में एमबीबीएस छात्रों द्वारा देय शिक्षण शुल्क में बढ़ोत्तरी की थी। कोर्ट ने कहा कि, हमारी राय है कि उच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2017 के सरकारी आदेश को रद्द करने और ब्लॉक वर्ष 2017-2020 के लिए शिक्षण शुल्क बढ़ाने में कोई गलती नहीं की है।

कोर्ट ने कहा, फीस को बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना करना यानी पहले तय फीस से सात गुना ज्यादा करना बिल्कुल भी जायज नहीं। शिक्षा लाभ कमाने का जरिया नहीं है।ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती रहनी चाहिए। अदालत ने कहा कि ट्यूशन फीस का निर्धारण/समीक्षा करते समय इन फैक्टरों पर प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (AFRC) की ओर से विचार किया जाना जरूरी है।

अदालत ने देखा कि शुल्क का निर्धारण / शुल्क की समीक्षा निर्धारण नियमों के मापदंडों के भीतर होगी। 2006 के नियम 4 में उल्लिखित कारकों का सीधा संबंध होगा। जिसमें पेशेवर संस्थान का स्थान शामिल है। जिसमें पेशेवर संस्थान का स्थान; पेशेवर पाठ्यक्रम की प्रकृति; उपलब्ध बुनियादी ढांचे की लागत; प्रशासन और रखरखाव पर खर्च; पेशेवर संस्थान की वृद्धि और विकास के लिए जरूरी उचित अधिशेष; आरक्षित वर्ग और समाज के बाकी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित छात्रों के संबंध में शुल्क की छूट (अगर कोई हो) आदि है।

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अदालत ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2017 के सरकारी आदेश के तहत जमा की शिक्षण शुल्क की राशि वापस करने के निर्देश जारी करने में कोई त्रुटि नहीं की है।’प्रबंधन को अवैध सरकारी आदेश दिनांक 06.09.2017 के अनुसार वसूल की गई राशि को अपने पास रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मेडिकल कॉलेज 6 सितंबर 2017 के सरकार के अवैध आदेश का फायदा उठाने वाले हैं, जिसे उच्च न्यायालय ने सही तौर पर खारिज कर दिया है।

अदालत ने कहा कि जैसा कि उसने नोट किया कि मेडिकल कॉलेजों ने कई वर्षों तक राशि का उपयोग किया है और कई वर्षों तक अपने पास रखा है, दूसरी ओर छात्रों ने वित्तीय संस्थानों और बैंकों से ऋण प्राप्त करने के बाद अत्यधिक शिक्षण शुल्क का भुगतान किया और भुगतान किया ब्याज दर ऊंची है। अदालत ने कहा, ‘इसलिए, उच्च न्यायालय द्वारा भी ट्यूशन की राशि वापस करने के निर्देश जारी किए गए हैं।