Sonia Gandhi: सोनिया गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वे राजनीति से संन्यास नहीं ले रहीं। कांग्रेस अधिवेशन में उनके भाषण के बाद जो अटकलें शुरू हुईं थी, अब वे खत्म हो गयी हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे कभी राजनीति से रिटायर नहीं होंगी। यानी वे जीवनपर्यंत राजनीति करेंगी। ये वहीं सोनियां गांधी हैं जो कभी राजनीति के नाम से नफरत करती थीं। राजीव गांधी से शादी के समय उन्होंने फैसला किया था कि वे राजनीति से दूर रहेंगी। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार अरुण पुरी को दिये इंटरव्यू में कहा था, मैं और राजीव साधारण जीवन जीना चाहते थे। हमारे दो बच्चे थे। राजीव जब पायलट थे तब परिवार को ज्यादा समय देते थे। मुझे लगता था जब वे राजनीति में जाएंगे तो परिवार को समय नहीं दे पाएंगे। 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो उस समय भी सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के राजनीति में जाने का विरोध किया था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जिस राजनीति को कभी वे नापसंद करती थीं, अब उसमें रच-बस गयी हैं।
राजनीति में रम-जम गयीं, 19 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक कांग्रस की अध्यक्ष रहीं हैं। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी भी इतनी लंबी अवधि तक पार्टी अध्यक्ष नहीं रहे। सोनिया 1998 में पहली बार पार्टी की अध्यक्ष बनी थी। 2017 में उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। यानी वे लगातार 19 साल तक कांग्रस अध्यक्ष रहीं। उनके बाद राहुल गांधी को यह जिम्मेदारी मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने भी अध्यक्ष पद छोड़ दिया। आखिरकार सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। काफी खींचतान और जद्दोजहद के बाद पिछले साल मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने। एक बात साफ है, कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी रहे वास्तविक शक्ति सोनिया गांधी और राहुल गांधी में निहित रहेगी। यहां तक कि कांग्रेस का कोई नेता प्रधामंत्री भी बने जाए लेकिन उससे सोनिया -राहुल की हैसियत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। पार्टी हो या सरकार, सत्ता की धुरी तो गांधी परिवार ही है।
“धीरे धीरे अधिनायकवादी नेता बन गयीं” भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी कुंवर नटवर सिंह को गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता था। वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बहुत नजदीक रहे। हालांकि बाद में वे सोनिया गांधी के कट्टर आलोचक बन गये थे। उन्होंने अपनी किताब- वन लाइफ इज नॉट एनफ में सोनिया गांधी के व्यक्तित्व की अपने तरीके से विवेचना की है। उनके मुताबिक सोनिया गांधी शुरू में सहमी रहती थीं और स्वभाव से बहुत शर्मीली थीं। फिर वे धीरे धीरे महत्वाकांक्षी होती गयी। इसके बाद वे अधिनायकवादी और सख्त नेता बन गयीं। वे बहुत जल्द नाराज हो जाती थीं लेकिन कुछ कहती नहीं थीं। ऊपर से शांत रहतीं लेकिन अपनी आलोचना करने वाले को कभी माफ नहीं करती थीं। नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर कांग्रेस की निर्भरता ने उन्हें ताकतवर बना दिया था। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे लेकिन उन्हें सोनिया गांधी की सलाह पर चलना पड़ता था। बाद में जब नरसिम्हा राव ने सोनिया गांधी से राय लेनी बंद कर दी तो उन्हें अपमानजनक परिस्थियों से गुजरना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय मारू ने अपनी किताब (द एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह) में लिखा है, सरकार से संबंधित सभी फाइलें पहले सोनिया गांधी के पास जाती थीं। उनकी सहमति और सुझाव के बाद ही वे दस्तखत करते थे। नटवर सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर संजय मारू के इस खुलासे को सही बताया है। वे मनमोहन सिंह सरकार में विदेश मंत्री थे।
कांग्रेस राजनीति की नियामक बिन्दु सोनिया गांधी 2004 में प्रधानमंत्री बन सकती थीं। वे सर्वसम्मति से कांग्रेस संसदीय दल की नेता चुनी गयीं थीं। कांग्रेस के सहयोगी दल भी इसके लिए राजी थे। लेकिन राहुल गांधी ने इसका विरोध कर दिया। उन्हें लगता था कि यदि उनकी मां प्रधानमंत्री बनीं तो पिता और दादी की तरह उनकी भी जान जा सकती है। राहुल गांधी ने अपनी मां को फैसला बदलने के लिए एक दिन का वक्त दिया था। उन्होंने यह धमकी भी दी थी कि वे इस फैसले को बदलने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। नटवर सिंह के मुताबिक, इस धमकी ने सोनिया गांधी को रुला दिया था। तब सोनिया गांधी ने मनमोनहन सिंह को प्रधानमंत्री मनोनीत किया था। वे प्रधानमंत्री नहीं बनी लेकिन सत्ता की नियंत्रणकर्ता वहीं थीं। सोनिया गांधी सियासी समंदर के किनारे खड़ा होकर केवल ज्वार-भाटा नहीं देख सकती। वे कश्ती की पतवार खुद अपने हाथों में रखना चाहती हैं। वे किसी पद पर रहें या न रहें लेकिन उनकी सहमति के बिना कांग्रेस का एक पत्ता भी नहीं डोल सकता। जिस व्यक्ति ने एक बार शक्ति धारण कर ली उससे इसका मोह शायद ही कभी खत्म होता है। जाहिर है वे कभी राजनीति से रिटायर नहीं होंगी।