Sawan 2022: जटाओं में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा और गले में सर्प क्यों धारण करते हैं महादेव? जानें कारण
संदीप गौतम, अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, रायपुर। भगवान शिव (Lord Shiva) जटा में गंगा, माथे पर चंद्रमा और गले में सर्प धारण किए नजर आते हैं, शिवजी के इन सभी प्रतीकों के पीछे पौराणिक कथाएं जुड़ी है, जिसका जिक्र शिवपुराण में मिलता है, जानते हैं शिवजी के इन प्रतीकों से जुड़े महत्व व रहस्य के बारे में…
Sawan 2022: सावन माह भगवान शिव की पूजा-अराधना के लिए समर्पित होता है, इस पूरे माह शिवजी की विशेष पूजा की जाती है और व्रत रखे जाते हैं, शिवजी को शक्ति का भंडार कहा गया है. भगवान शिव से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं हैं। भगवान शिव शक्तिमय हैं, और उनका श्रृंगार अलौकिक है, शिवजी जटाओं में गंगा, मस्तक में चंद्रमा, गले में सर्प, हाथ में डमरू और त्रिशूल जैसी चीजें धारण किए होते हैं, इन प्रतीकों को धारण करने पीछे कथाएं जुड़ी हुई हैं।
शिवजी की जटा में कैसे आईं मां गंगा:
शिवपुराण के अनुसार, भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर अवतरित कराने के लिए कठोर तप किया, भागीरथ की तपस्या से मां गंगा प्रसन्न तो हुईं, लेकिन गंगा यदि सीधे देवलोक से पृथ्वी पर आतीं तो पृथ्वी उनके वेग को सहन नहीं कर पाती, इसलिए भागीरथ ने शिवजी को अपने तप से प्रसन्न किया और उनसे प्रार्थना की, तब शिवजी ने मां गंगा को अपनी जटा में धारण किया और इसके बाद शिवजी की जटा से मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं. यही कारण है कि शिवजी अपनी जटाओं में गंगा को धारण किए होते हैं।
शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा का क्या है रहस्य:
शिवजी के मस्तक में चंद्रमा का रहस्य समुंद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. इसके अनुसार, समुद्र मंथन से जो हलाहल विष निकला था, उसे शिवजी ने स्वंय पी लिया क्योंकि इससे सृष्टि पर कोई संकट ना आए, इस विष को ग्रहण करते ही शिवजी का शरीर तपने लगा. तब शिवजी के माथे पर चंद्रमा विराजमान हुए, जिसके बाद शिवजी को शीतलता मिली।
गले में क्यों सर्प की माला पहनते हैं शिव:
शिवजी के गले में सर्प होता है, जो माला की तरह घुमा होता है, लेकिन शिवजी ने गले में जो सर्प धारण किया है वह कोई साधारण सर्प नहीं बल्कि वासुकी सर्प हैं, कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय किसी रस्सी का नहीं बल्कि वासुकी सर्प का इस्तेमाल हुआ था, वासुकी सर्प को रस्सी के रूप में मेरु पर्वत के चारों तरफ इस्तेमल किया गया था, समुद्र मंथन के समय एक ओर देवता और दूसरी ओर असुर समुंद्र मंथन कर रहे थे, जिससे वासुकी सर्प का शरीर लहुलुहान हो गया था, वासुकी सर्प की यह दशा देख भगवान शिव ने उसे अपने गले में धारण कर लिया।
शिवजी के हाथों में क्यों होता है डमरू और त्रिशूल:
शिवजी अपने हाथ में त्रिशूल और डमरू लिए होते हैं, त्रिशूल को लेकर ऐसी पौराणिक कथा है कि जब शिवजी प्रकट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत गुण थे, इन तीन गुणों से मिलकर त्रिशूल का निर्माण हुआ।
डमरू से जुड़ी कहानी काफी रोचक है. कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने जब सृष्टि का निर्माण किया तो पूरा संसार संगीतहीन था, तब देवी सरस्वती प्रकट हुईं और उन्होंने वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया, लेकिन इसमें सुर नहीं था, तब शिवजी ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाई, डमरू की ध्वनि से ही धुन और ताल का जन्म हुआ, यही कारण है शिवजी के हाथों में सदैव त्रिशूल और डमरू होते हैं।