राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि देश में लिंचिंग की घटनाओं की आड़ मे षडयंत्र चल रहा है.
विजयादशमी के दिन आरएसएस के स्थापना दिवस के मौक़े पर मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस के मुख्यालय में अपने भाषण में इस पर विस्तार से बातें रखीं.
मोहन भागवत ने कहा कि ऐसे मामलों को जान-बूझकर तूल दिया जाता है.
उन्होंने कहा,” ऐसे भी समाचार आए हैं कि एक समुदाय के व्यक्ति ने दूसरे समुदाय के इक्का-दुक्का व्यक्ति को पकड़कर पीटा, मार डाला, हमला किया. ये भी ध्यान में आता है कि किसी एक ही समुदाय की ओर से दूसरे समुदाय को रोका है. उल्टा भी हुआ है. ये भी हुआ है कि कुछ नहीं भी हुआ है, तो बना दिया गया. दूसरा कुछ भी हुआ है या नहीं भी हुआ है तो उसे इस रंग में रंगा गया है.
“100 घटनाएँ ऐसी हुई हों तो दो-चार में तो ऐसा हुआ ही होगा. पर जो स्वार्थी शक्तियाँ हैं वो इसे बहुत उजागर करती हैं. ये किसी के पक्षधर नहीं हैं. समाज के दो समुदायों के बीच झगड़ा हो यही उनका हेतु है.”
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आरएसस के सदस्य ऐसे झगड़ों में नहीं पड़ते बल्कि वो तो उन्हें रोकने का प्रयास करते हैं.
उन्होंने कहा,” एक षडयंत्र चल रहा है, संघ का नाम लेते होंगे, हिंदुओं का नाम लेते होंगे. जो हमारे देश में कभी रही नहीं. हमारे संविधान में ऐसा कोई शब्द नहीं है. आज भी नहीं है. यहाँ ऐसी बातें हुई नहीं, जिन देशों में हुई वहाँ उनके लिए एक शब्द है. जैसे एक शब्द चला पिछले साल – लिंचिंग. ये शब्द कहाँ से आया?”
“एक समुदाय के धर्मग्रंथ में है ऐसा कि एक महिला को जब सब पत्थर मारने लगे तो ईसा मसीह ने कहा कि पहला पत्थर वो मारे जो पापी ना हो. हमारे यहाँ ऐसा कुछ हुआ नहीं. ये छिटपुट समूहों की घटना है जिसके ख़िलाफ़ क़ानूनी रूप से कार्रवाई होनी चाहिए. दो दूसरे देश से आई परंपरा से आए शब्द को भारत पर थोपने की कोशिश हो रही है.”
अपने भाषण में आरएसएस प्रमुख ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के मोदी सरकार के फ़ैसले की तारीफ़ करते हुए कहा है कि सरकार ने कई कड़े फ़ैसले लेकर बताया है कि उसे जनभावना की समझ है.
मोहन भागवत ने कहा,” बहुत दिनों के बाद देश में कुछ होने लगा ऐसा लगता है. और ये जो विश्वास प्रकट हुआ, तो जनभावना और विश्वास को ध्यान में लेकर साहसी और कठोर निर्णय लेने की ताक़त इस सरकार की है ये सिद्ध हुआ जब 370 को अप्रभावी बनाया गया.”
“प्रजातांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा जैसा होना है वैसा हुआ. जनता की इच्छा तो बहुत दिनों की थी. सत्तारूढ़ दल का विचार भी छिपा नहीं था. वो दल जिस जनसंघ से निकला उसका पहला आंदोलन ही यही था कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे. 370 हटाने की मांग तो पुरानी थी. पर इसके लिए उन्होंने मन बनाया, निर्णय किया और अकेले नहीं किया. राज्यसभा, लोकसभा में और भी दलों का सहयोग लेकर बहुमत से किया. उनका ये कार्य अभिनंदनीय है और इसकी बहुत प्रशंसा होनी चाहिए.