अनादि न्यूज़

सबसे आगे सबसे तेज

धर्म - ज्योतिष

Pitru Paksha 2022: जानिए कौन-सा श्राद्ध कब किया जाता है?

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, धर्म-दर्शन। शास्त्रों में श्राद्ध के अनेक प्रकार बताए गए हैं, जिनमें पांच मुख्य प्रकार के श्राद्ध होते हैं। सभी प्रकार के श्राद्धों का अपना-अपना विशेष महत्व होता है। विशेष प्रयोजन के लिए किए जाने वाले श्राद्ध भी इन्हीं में शामिल होते हैं।’

मत्स्य पुराण में श्राद्ध के तीन भेद बताए गए हैं-

नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं श्राद्धमुच्यते। अर्थात् नित्य, नैमित्तिक और काम्य ये तीन प्रकार के श्राद्ध होते हैं।

इसके अलावा यम स्मृति में श्राद्ध के पांच भेद बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण। प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इसमें विश्वदेव नहीं होते तथा मात्र जल प्रदान से भी इस श्राद्ध की पूर्ति हो जाती है। एकोदिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसमें भी विश्वेदेव नहीं होते। किसी कामना की पूर्ति के लिए काम्य श्राद्ध किया जाता है। वृद्धिकाल में अर्थात् पुत्रजन्म तथा विवाह आदि मांगलिक कार्यो में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नांदी श्राद्ध कहते हैं। पितृपक्ष, अमावस्या अथवा पर्व की तिथि में जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।

विश्वामित्रस्मृति तथा भविष्यपुराण में श्राद्ध के बारह भेद बताए गए हैं।

ये हैं- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिण्डन, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्माग, दैविक, यात्रार्थ तथा पुष्टयर्थ ये बारह प्रकार होते हैं। किंतु सभी श्राद्धों का मूल उपरोक्त पांचों श्राद्धों में आ जाता है।

सपिंडन : जिस श्राद्ध में प्रेतपिंड का पितृपिंडों में सम्मिलन किया जाता है।

गोष्ठी : समूह में किया जाने वाला श्राद्ध।

शुद्धयर्थ : शुद्धि के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।

See also  गणेश चतुर्थी पर गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

कर्माग : गर्भाधान, सीमंतोनयन तथा पुंसवन आदि संस्कारों में किया जाने वाला श्राद्ध।

दैविक : सप्तमी आदि तिथियों में विशिष्ट हविष्य के द्वारा देवताओं के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध।

यात्रार्थ : तीर्थ के उद्देश्य किया जाने वाला श्राद्ध।

पुष्टयर्थ : शारीरिक अथवा आर्थिक उन्नति के लिए किया जाने वाला श्राद्ध।

श्राद्ध के अवसर:

श्राद्ध करने के लिए वर्ष में 96 अवसर आते हैं।

बारह महीनों की 12 अमावस्याएं,

सतयुग, त्रेतादि युगों के प्रारंभ की चार युगादि तिथियां,

मनुओं के आरंभ की 14 मन्वादि तिथियां,

12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग,

12 व्यतिपात योग, 15 दिन पितृपक्ष,

5 अष्टका, 5 अन्वष्टका तथा 5 पूर्वेद्यु।