अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, धर्म-दर्शन। Masik Shivratri 2022: इस वक्त मार्गशीर्ष माह चल रहा है, माना जाता है कि इस महीने का हर पर्व सीधा ईश्वर से भक्तों का साक्षात्कार कराता है। इस महीने की शिवरात्रि का अपना खास महत्व है। आज वो ही पावन दिन है। कहते हैं कि आज के दिन जो सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है, उसके सारे कष्टों का अंत होता है और उसे सारी खुशियां नसीब होती हैं।
मासिक शिवरात्रि मुहूर्त
- चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: आज सुबह 08 :49 AM
- चतुर्दशी तिथि अंत: 23 नवंबर को 06:53 AM
- उदयातिथि के अनुसार, मार्गशीर्ष की मासिक शिवरात्रि आज ही है।
- शुभ मुहूर्त – प्रदोष काल
मासिक शिवरात्रि मंत्र
इन मंत्रों का आज जाप करने से इंसान के सारे कष्ट मिट जाते हैं और इंसान को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
- ॐ शिवाय नम:
- ॐ सर्वात्मने नम:
- ॐ त्रिनेत्राय नम:
- ॐ हराय नम:
- ॐ इन्द्र्मुखाय नम:
- ॐ अनंतधर्माय नम:
- ॐ ज्ञानभूताय नम:
- ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
- ॐ प्रधानाय नम:
- ॐ श्रीकंठाय नम:
- ॐ सद्योजाताय नम:
- ॐ वामदेवाय नम:
- ॐ अघोरह्र्द्याय नम:
- ॐ तत्पुरुषाय नम:
- ॐ ईशानाय नम:
शिवरात्रि आरती
- ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
- ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
- ओम जय शिव ओंकारा।।
- एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
- वृषवाहन साजे।।
- ओम जय शिव ओंकारा।।
- दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
- त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
- ओम जय शिव ओंकारा।।
- अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
- त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
- ओम जय शिव ओंकारा।। श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।। ओम जय शिव ओंकारा।। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। ओम जय शिव ओंकारा।। लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।। ओम जय शिव ओंकारा।। पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।। ओम जय शिव ओंकारा।। जया में गंग बहत है, गल मण्ड माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।। ओम जय शिव ओंकारा।। काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।। ओम जय शिव ओंकारा।। त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।। ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
श्री शिव चालीसा
||दोहा|| जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
||चौपाई|| जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥ कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥ पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥ मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥ धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥ अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥ नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥ ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥ पुत्र हीन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥ ||दोहा|| नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा । तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥ मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥