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Last Monday of Sawan : सावन का अंतिम सोमवार आज, लगा है रवियोग, जानिए इसका महत्व

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, धर्म दर्शन। आज प्रभु भोलेनाथ के प्रिय महीने सावन का चौथा और अंतिम सोमवार है, सावन के हर सोमवार की तरह आज का मंडे भी काफी खास है क्योंकि आज रवियोग लगा है। माना जाता है कि इस योग में पूजा करने से इंसान की हर इच्छा की पूर्ति होती है। आज सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखी जा रही है और शिवालयों में हर-हर महादेव के जयकारे सुनाई दे रहे हैं।

रवि योग आज के दिन रवि योग का शुभ योग:

सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो चुका है। मालूम हो कि आज का सोमवार सुख-खुशी और आर्थिक वैभव प्रदान करने वाला है। अगर आज अगर शिवभक्त अपने शिव की भांग, धतूरा और शहद से पूजा करें, तो उन्हें शक्ति, स्वास्थ्य और हर तरह का सुख प्राप्त होगा। गौरतलब है कि सावन का महीना इस साल 11 अगस्त को समाप्त हो रहा है और इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी है।

इन मंत्रों से कीजिए शिव को प्रसन्न:

ऊँ महाशिवाय सोमाय नम:। ‘ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः ॐ’ ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः| स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः|| नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वरायनित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥ मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वरायमंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥ शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

शिव जी की आरती:

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे । त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा… अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी । सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे । कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा । पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा । भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला । शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी । नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥