Haritalika Teej 2022: हरतालिका तीज आज, शुभ योग में होगा हरितालिका तीज व्रत, पढ़ें कथा
अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, नई दिल्ली। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरितालिका तीज व्रत इस बार 30 अगस्त 2022 मंगलवार को विशिष्ट संयोगों में आ रहा है। इस दिन कल्याणकारी हस्त नक्षत्र और शुभ योग रहेगा। साथ ही मंगलवार का दिन होने के कारण माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होगी। इस दिन चार बड़े ग्रह स्वराशि में गोचर करेंगे। हरितालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं सुखद दांपत्य जीवन के लिए और कन्याएं उत्तम वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। दिनभर व्रत रखा जाता है और रात्रि में भगवान के भजन-कीर्तन, गीत गाए जाते हैं।
हरितालिका तीज व्रत:
हरितालिका तीज व्रत के बारे में पुराणों में उल्लेख मिलता है किमाता पार्वती ने एक जन्म में शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया और वरदान के रूप में उनसे उन्हें ही मांग लिया। इसी व्रत को हरितालिका तीज व्रत के नाम से जाना जाता है। कई स्थानों पर इसे बड़ी तीज भी कहते हैं। हरितालिका तीज की कथा एक बार मां पार्वती ने गंगा किनारे 12 वर्ष की आयु में कठोर तप किया। वे शिवजी को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। उनके व्रत के उद्देश्य से अपरिचित उनके पिता गिरिराज अपनी बेटी को कष्ट में देखकर बहुत दुखी हुए। एक दिन स्वयं नारद मुनि ने आकर गिरिराज से कहा किआपकी बेटी के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। उनकी बात सुनकर पार्वती के पिता ने प्रसन्न होकर सहमति दे दी। उधर, नारद मुनि ने भगवान विष्णु से जाकर कहा किगिरिराज अपनी बेटी का विवाह आपसे करना चाहते हैं। श्री विष्णु ने भी विवाह के लिए सहमति दे दी।
गिरिराज ने अपनी पुत्री को यह शुभ समाचार सुनाया:
नारद जी के जाने के बाद गिरिराज ने अपनी पुत्री को यह शुभ समाचार सुनाया कि उनका विवाह श्री विष्णु के साथ तय कर दिया गया है। उनकी बात सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं। यह देखकर उनकी प्रिय सखी ने विलाप का कारण जानना चाहा। पार्वती ने बताया किवे तो शिवजी को अपना पति मान चुकी हैं और पिताजी उनका विवाह श्री विष्णु से तय कर चुके हैं। पार्वती ने अपनी सखी से कहा किवह उनकी सहायता करे, उन्हें किसी गोपनीय स्थान पर छुपा दें अन्यथा वे अपने प्राण त्याग देंगी। पार्वती की बात मानकर सखी उनका हरण कर घने वन में ले गई और एक गुफा में उन्हें छुपा दिया। वहां एकांतवास में पार्वती ने और भी अधिक कठोरता से भगवान शिव का ध्यान करना प्रारंभ कर दिया।
बालूरेत का शिवलिंग बनाया:
इसी बीच भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में पार्वती ने बालूरेत का शिवलिंग बनाया और निर्जला, निराहार रहकर, रात्रि जागरण कर व्रत किया। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने साक्षात दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने उन्हें अपने पति रूप में मांग लिया। शिवजी वरदान देकर वापस कैलाश पर्वत चले गए। इसके बाद पार्वती जी अपने गोपनीय स्थान से बाहर निकलीं। उनके पिता बेटी के घर से चले जाने के बाद से बहुत दुखी थे। वे भगवान विष्णु को विवाह का वचन दे चुके थे और उनकी बेटी ही घर में नहीं थी। चारों ओर पार्वती की खोज चल रही थी। पार्वती ने व्रत संपन्न होने के बाद समस्त पूजन सामग्री और शिवलिंग को गंगा नदी में प्रवाहित किया और अपनी सखी के साथ व्रत का पारण किया। तभी गिरिराज उन्हें ढूंढते हुए वहां पहुंच गए। उन्होंने पार्वती से घर त्यागने का कारण पूछा। पार्वती ने बताया किमैं शिवजी को अपना पति स्वीकार चुकी हूं और आप श्री विष्णु से मेरा विवाह कर रहे हैं। यदि आप शिवजी से मेरा विवाह करेंगे, तभी मैं आपके साथ घर चलूंगी। पिता गिरिराज ने पार्वती का हठ स्वीकार कर लिया और धूमधाम से उनका विवाह शिवजी के साथ संपन्न कराया।
पार्वती की सखी उनका हरण किया:
पार्वती की सखी उनका हरण कर उन्हें घनघोर वन में ले गई थीं। हरत यानि हरण करना और आलिका यानि सखी अर्थात सखी द्वारा हरण करने के कारण ही यह व्रत हरितालिका व्रत के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है किजो स्त्री पूरे विधि-विधान से इस व्रत को संपन्न करती है, वह शिवजी से वरदान में अटल सुहाग पाती है और अंत में शिवलोक गमन करती है। व्रत की पूजा विधि हरितालिका तीज के दिन बालूरेत के शंकर-पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है। उनके ऊपर फूलों का मंडल सजाया जाता है। पूजा गृह को केले के पत्तों और अन्य फूल-पत्तियों से सजाया जाता है। यह निर्जल, निराहार व्रत है, जिसमें प्रसाद के रूप में फलादि ही चढ़ाए जाते हैं। व्रती स्ति्रयां रात्रि जागरण कर, भजन-कीर्तन कर पांच बार भगवान शिव की पूजा करती हैं। दूसरे दिन भोर होने पर नदी में शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन करने के साथ यह व्रत संपन्न होता है। स्वराशि के चार ग्रह देंगे विशेष फल हरितालिका तीज के दिन चार ग्रह अपनी ही राशि में रहेंगे। सूर्य सिंह में, बुध कन्या में, शनि मकर में और गुरु मीन राशि में हैं। भगवान शिव के साथ इन चारों ग्रहों की विशेष कृपा प्राप्त होगी। इसका विशेष फल प्राप्त होगा।