Gujarat Election Results: गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की इस बार की जीत अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन रही हैं। बात गौर करने वाली भी है। जो पार्टी ढाई दशकों से ज्यादा समय से एक राज्य में सत्ता में है, वह ना सिर्फ चुनाव जीतने का दो दशक वाला अपना ही पुराना रिकॉर्ड तोड़ती है, बल्कि अबतक के सारे रिकॉर्ड का रिकॉर्ड भी तोडती है। चुनावी विश्लेषक इस बात पर माथापच्ची में लगे हैं कि आखिर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य में सत्ताधारी पार्टी को इतनी बड़ी सफलता कैसे मिली ? जिस इलाके में इतना बड़ा पुल हादसा हुआ, वहां भी पार्टी जबर्दस्त वोटों के अंतर से जीती है तो यह राजनीति की सामान्य घटना तो नहीं ही कही जा सकती है। हमने भी इसपर काम किया तो यही पाया है कि बीजेपी को इतनी बड़ी कामयाबी आसानी से नहीं मिली है। इसके पीछे कम से कम पांच बड़े कारण रहे हैं।
पीएम मोदी में भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के नहीं, आम गुजरातियों के नेता बन चुके हैं। उनकी छोटी सी अपील भी अगर बीजेपी कार्यकर्ताओं तक निर्देश की तरह पहुंचती है, जो प्रदेश के ज्यादातर लोगों के लिए वह अपने सबसे बड़े नेता का सीधा संदेश की तरह होता है, जिसे वह पूरा सम्मान देते हैं। पीएम मोदी 8 साल पहले गुजरात से निकल चुके हैं, लेकिन तब से ज्यादा अब गुजरातियों के दिलों में जगह बना चुके हैं। वह जब भी प्रदेश के दौरे पर आते हैं, कोई ना कोई उपहार प्रोजेक्ट के तौर पर दे आते हैं। चाहे अहमदाबाद में मेट्रो हो या फिर कच्छ में भुज कैनाल। चाहे बनासकांठा में डेयरी हो या फिर सूरत में ड्रीम सिटी प्रोजेक्ट। प्रदेश में ऐसे कितने ही प्रोजेक्ट की पहचान सीधे प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ी हुई है। सबसे बढ़कर पीएम मोदी ने जिस तरह से गुजरात में प्रचार अभियान की कमान संभाली, उसने शाय जाति-समुदाय का कोई भेद ही नहीं रहने दिया। शायद इसकी वजह से वोटरों में सीधा संदेश गया कि मोदी मतलब सुशासन, बीजेपी मतलब विकास।
शहरी पार्टी के ठप्पे से उबरने में सफलता
2017 के चुनाव में गुजरात में बीजेपी ने जो 99 सीटें जीती थीं, उनमें से ज्यादतर शहरी इलाकों की थीं। इसके ठीक उलट कांग्रेस की 77 सीटें मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से ही मिली थीं। भारतीय जनता पार्टी ने इस ट्रेंड को बदलने में इस बार सफलता पाई है। वह सौराष्ट्र और मध्य गुजरात की ज्यादातर सीटें जीत गई है। फिर इसमें एक बार केंद्र की मोदी सरकार और गुजरात की बीजेपी सरकार का बड़ा रोल रहा है। कोरोना काल की कठिनाइयों के दौरान से दी जा रही कल्याणकारी सहायता ने शहरियों की पार्टी वाली इसकी छवि बदलने में काफी मदद की है। जिस तरह से मतदान का प्रतिशत गिरा था, पार्टी तनाव में जरूर आई थी लेकिन, हर वोटर को बूथ तक लाने की उसकी रणनीति कारगर साबित हुई। पार्टी ने जो सीटें कभी नहीं जीती थी, उसके लिए विशेष रणनीति बनाई गई थी और वह चल निकली। गांवों में सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के लिए बीजेपी ने जो माइक्रोमैनेजमेंट किया, वह क्लिक कर गया। क्योंकि, पार्टी के मजबूत संगठन ने इस काम को बहुत आसान कर दिया।
उम्मीदवारों का चुनाव
भाजपा नेतृत्व एक साल पहले से ही चुनावी मोड में आ गया था। एंटी-इंकंबेंसी को प्रो-इंकंबेंसी में बदलने की रणनीति बनाकर उसने सबसे पहले मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को ही बदलने से शुरुआत की। पाटीदार समाज के भूपेंद्र पटेल के हाथों कमान सौंप दी गई, जिनकी छवि ना सिर्फ साफ-सुथरी है, बल्कि उनका व्यक्तित्व भी काफी सौम्य रहा है। 2017 में जो पाटीदार समाज पार्टी से नाराज था, उसके गिले-शिकवे पहले दिन से ही दूर होने शुरू हो गए। चुनाव का समय आया तो वरिष्ठ मंत्रियों समेत 42 विधायकों का टिकट काट दिया। यानि इतनी सीटों पर यदि विधायकों के चलते एंटी-इनकंबेंसी रही होगी तो उसे पहले ही खत्म कर दिया गया था। नौकरशाही में पूरी तरह से फेरबदल का काम पहले ही अंजाम दे दिया गया था। पूर्व सीएम विजय रुपाणी के समय सरकार और संगठन में अगर थोड़ा खिंचाव था, तो वह भी भूपेंद्र पटेल और प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की ट्यूनिंग से दूर हो गया।
सौराष्ट्र, आदिवासी और ओबीसी-बहुल इलाकों में कामयाबी
2017 में कांग्रेस ने सौराष्ट्र, आदिवासी इलाके और उत्तर गुजरात में अच्छी सफलता पाई थी। लेकिन, बीजेपी के माइक्रोमैनेजमेंट ने इस बार कहानी ही पलट दी। सबसे कमजोर सीट को मजबूत करने के लिए उसने काफी मेहनत की जिसका अब जाकर फल मिला है। दूसरी तरफ कांग्रेस अपने मजबूत किले को बचा पाने में भी कमजोर पड़ गई। सौराष्ट्र के 54 में से 43 सीटों पर बीजेपी का कमल खिला है। आदिवासी बहुल दाहोद, पंचमहल, नर्मदा, छोटा उदयपुर, डांग और बाकी इलाकों में भी उसे बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। यह वह इलाका है, जो कि देश के पहले आम चुनावों से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। बीजेपी उत्तर गुजरात के ओबीसी बहुल क्षेत्रों में भी जीती है। यहां तक कि बनासकांठा में भी भगवा परचम लहराया है, जहां पिछली बार कांग्रेस ही कांग्रेस नजर आ रही थी। बीजेपी ने यहां हर कदम इस तरह से उठाया था, जिससे आदिवासियों की भावनाएं आहत ना हों और वोटों की गिनती के समय उसे इसका लाभ प्राप्त हुआ है।