दीपावली से ठीक पहले धनतेरस का त्यौहार आता है। सामान्यतया इस दिन शहरों में बर्तन खरीदने या झाड़ू खरीदने की परम्परा है। लेकिन धनतेरस का केवल इतना ही महत्व नहीं है। धनतेरस मनुष्य के लिए अमृतकाल है।
भारतीय काल गणना के अनुसार
दीपावली नरक चतुर्दसी के दिन पड़ती है। यानी एक ऐसा दिन जो भारतीय काल गणना के अनुसार बहुत खराब समय माना जाता है। इसलिए इस दिन की कालिमा को दूर करने के लिए दीपावली की परंपरा पड़ी। जनस्रुति यह भी है कि राम जब अयोध्या में रावण को मारकर लौटे तो उनके आगमन की खुशी में जो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर जो स्वागत किया, उससे दीपावली मनाने की परंपरा शुरु हुई। शास्त्र और लोक परंपरा ये दो विपरीत बातें नहीं करते। शास्त्र में कही गयी बातों को जनस्रुति के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलती है। इसलिए भारत में हर शास्त्रीय व्यवस्था के पीछे कोई न कोई कहानी या जनस्रुति जुड़ी होती है। लोक समाज उसी परंपरा को अपनाता है। ऐसा करना उसके लिए आसान भी होता है। बहुत ज्यादा शास्त्रीय विधियों को अपनाना जन सामान्य के लिए संभव नहीं होता। इसलिए होली या दीपावली जो शास्त्रीय विधि से भले ही कोई अन्य विशिष्ट महत्व रखते हों, जनसामान्य उसे उत्सव के रूप में मनाता है। इसी कारण समाज के स्तर पर उत्सव ही धर्म बन जाता है।
ऐसा ही एक लोकधर्म धनतेरस है जो अब कुछ और रूप में मनाया जाने लगा है। लेकिन इसके साथ जो व्यवस्थाएं जोड़ी गयी हैं, उसमें कुछ आज भी जस की तस मानी जाती है। इसी में एक परंपरा है धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना। यहां झाडू खरीदने से आशय घर की साफ सफाई और स्वच्छता से है। आइये समझते हैं कि धनतेरस का झाड़ू से क्या सांकेतिक संबंध है। उससे पहले ये जान लेते हैं कि धनतेरस का असल में महत्त्व क्या है?
क्या है धनतेरस?
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। लोक मानस में धनतेरस का यह त्यौहार शास्त्रों में धन्वंतरि जयंती के रूप में वर्णित है। भगवान धन्वंतरि असल में स्वयं विष्णु हैं जो आयुर्वेद के अनुसार लोक के पालक और संचालक हैं। विष्णु ही धन्वतरि रूप में आयुर्वेद में स्वास्थ्य के देवता के रूप में मान्य किये जाते हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि समुद्र मंथन के समय स्वयं भगवान विष्णु हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे और देवताओं में वितरित कर दिया था। विष्णु के इस रूप को धन्वंतरि कहा गया और कार्तिक मास त्रयोदशी के दिन उन्हीं भगवान विष्णु का आरोग्य के देवता के रूप में पूजन किया जाता है।
2016 में भारत सरकार ने इस दिन को आरोग्य दिवस के रूप में घोषित किया और जितने भी आयुर्वेद के वैद्य होते हैं वो इस दिन विशेष रूप से भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। लोकमानस में इस दिन झाड़ू, बर्तन या फिर सोना खरीदने की परंपरा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है झाड़ू की खरीददारी। झाड़ू खरीदने से आशय यहां घर की साफ सफाई और स्वच्छता से है। मनुष्य के आरोग्य के लिए जरूरी है कि वह अपने आप को, अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और गंदगीमुक्त रखे इसलिए इस दिन प्रतीकात्मक रूप से झाड़ू खरीदा जाता है। इन्हीं तीन दिनों में भारत भर में घरों की विधिवत सफाई करने, पुराना बर्तन हटाकर नया बर्तन खरीदने की परंपरा भी है ताकि लोगों के घरों और रसोईं की स्वच्छता बनी रहे। जब घर और रसोंई स्वच्छ होगी तो अधिकांश बीमारियां अपने आप दूर हो जाएंगी।
मनुष्य का अमृतकाल लेकिन इन शास्त्रीय परंपराओं और लौकिक विधाओं के अतिरिक्त धनतेरस का दार्शनिक संदेश भी है। दीपावली के ठीक पहले पड़नेवाले धनतेरस को अमृतकाल कहते हैं। इसका दार्शनिक पक्ष यह है कि जहां अमृत है वहीं प्रकाश प्रकट होगा क्योंकि प्रकाश तो अमृत से ही है। हमारे उपनिषदों में जीवन को ही अमृत कहा गया है। मृत्यु विष है। इसलिए जीवन के इस अमृत को बचाये रखने के लिए आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा उपासना की जाती है। साथ ही साथ स्वच्छता और स्वास्थ्य का संकल्प लिया जाता है। जब एक बार मनुष्य स्वच्छ तन मन और वातावरण से अपने आप को तैयार कर लेता है तब दीपावली का आगमन होता है।
धनतेरस में धन शब्द का उपयोग है जबकि दीपाववी में भी धन की देवी लक्ष्मी का पूजन होता है। यहां यह समझना चाहिए कि भारतीय परंपरा में धन केवल रूपया पैसा नहीं है। धन का व्यापक अर्थ और महत्व है। भारतीय परंपरा में स्वास्थ्य भी धन है और संतान भी धन है। पशु भी धन है स्त्री भी धन है। इन सब प्रकार के धन में धान्य या अनाज को सबसे बड़ा धन कहा गया है। धनतेरस और दीपावली के रूप में भारतीय समाज हर प्रकार से अपने आप को धन धान्य से पूर्ण रखने का संकल्प लेता है। इसीलिए दीपावली के दिन लोग अपने नित्य प्रति के कार्य अवश्य करते हैं। इसके पीछे मान्यता ऐसी है कि जो काम हम दीपावली के दिन करते हैं वो हम सालभर करते हैं। परोक्ष रूप में इसके पीछे का संकेत यही है कि हमें अपने आप आप को धन धान्य और स्वास्थ्य से पूर्ण रखने के लिए धनतेरस और दीपावली को उत्सव के रूप में मनाना चाहिए।