अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, कवर्धा। छत्तीसगढ़ में नक्सवाद को समाप्त करने अब सरकार बंदूक की जगह शिक्षा को हथियार बना रही है। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में बंदूककुंदा, सौरू, घुमाछापर जैसे लगभग 10 गांवो को पहले नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। नक्सलियों की दहशत से ग्रामीण अपने बच्चों को स्कूल नही भेज पाते थे। लेकिन अब इन्ही गांवो में शिक्षा का उजियारा फैल रहा है। अब यहाँ दूसरे गांव के बच्चे स्कूल में पढ़ने आते हैं। यह सब संभव हुआ है छत्तीसगढ़ सरकार और कवर्धा पुलिस के प्रयासों से।
पुलिस जवानों ने की अस्थाई स्कूलों की शुरुआत दरअसल बच्चों की शिक्षा की दूरी ने परिजनों की चिंता बढ़ा दी थी। बच्चे खेलने और इधर उधर घूमने में अपना समय व्यतीत करते थे। परिजन अपने बच्चों को 6-7 किलोमीटर दुर स्कूल भेजने से डरते थे। जिसके बाद इन नक्सली खौफ वाले गांवों में ही अस्थायी स्कूल की शुरुआत पुलिस और सेना के जवानों ने की। जिससे लगभग इन गांवों के 250 बच्चे वहीं पढ़ रहे हैं। बीते 4 साल में इन अस्थायी स्कूलों में 700 से ज्यादा बच्चों ने 5 वीं की परीक्षा पास कर ली हैं। जिनमें से 50 बच्चे ऐसे भी हैं। जिनके परिजन नक्सली हिंसा के शिकार हो गए थे।
एंटी नक्सली मूवमेंट के तहत चलाया गया अभियान एसपी लाल उमेंद सिंह बताते हैं कि जिले के अंतिम छोर पर बसे गांवो में बच्चों को शिक्षित करना एक चुनौती थी। लेकिन फिर भी जिले के नक्सल प्रभावित ग्राम सौरू,पंडरीपथरा, बंदूककुंदा, झुरगीदादर, सुरूतिया, मांदीभाठा, तेंदूपड़ाव और बगदई पहाड़ गांव में फोर्स के जवान और पुलिस की बदौलत अस्थायी स्कूल शुरू किए गए। ताकि बच्चो को दूसरे गांवो में जाना न पड़े और यहां के बच्चे गांव में ही रहकर पढ़ सकें। यह सब कबीरधाम पुलिस के एंटी नक्सल मूवमेंट और कम्युनिटी पुलिसिंग की बदौलत सम्भव हो सका है।
कान्हा के रास्ते नक्सली करते हैं मूवमेंट छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले का सीमावर्ती इलाका मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क की सीमा से लगा हुआ है। इसलिए नक्सली छत्तीसगढ़ में अपने मूवमेंट के लिए इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं। कान्हा के नेशनल पार्क की सीमा पर स्थित ग्राम बंदूककुंदा यह नक्सलियों का सबसे सुरक्षित एरिया माना जाना था। अक्सर गांव में नक्सली आते थे। लेकिन इन सभी चुनौतियों के बीच जवानों ने यहां अस्थायी स्कूल शुरू किया।
ओपन कोचिंग सेंटर में पढ़ रहे हैं 74 बच्चे इन ग्रामीण इलाकों में नक्सलियों की पकड़ कमजोर करने के लिए पुलिस ने शिक्षा को हथियार बनाया और अस्थाई स्कूल शुरू की जिसमें शुरुआत में कई परेशानियां आई। शिक्षक यहाँ आने से घबराते थे। तब जवानों ने स्वयं बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। इससे यहां नक्सलियों की पकड़ कमजोर पड़ गई।नक्सल प्रभावित ग्राम बोदा, बोक्करखार और कुंडपानी में पुलिस ओपन स्कूल कोचिंग सेंटर संचालित करा रही है। इन अस्थाई स्कूल में 250 और तीन ओपन स्कूल कोचिंग सेंटर में 74 बच्चे अध्ययनरत हैं।
सीमावर्ती क्षेत्र में नक्सलियों का मूवमेंट हुआ कम इस तरह गांवो में स्कूल खुलने और जवानों की निरन्तर आमद से इन सीमावर्ती गांवो में नक्सलियों का दहशत कम हुआ है। नक्सली बैगा आदिवासियों को अपनी जरूरतों के लिए परेशान करते थे।वर्ष 2018 में ग्राम झुरगीदादर से लगे घुमाछापर में पहला नक्सल एनकाउंटर हुआ था। इसमें एक नक्सली मारा गया था। वहीं वर्ष 2019 में सुरतिया में हुए एनकाउंटर में एक महिला नक्सली मारी गई थी। नक्सल दहशत को खत्म करते हुए दोनों ही गांव अस्थाई स्कूल खोले गए, जहां अब बच्चे पढ़ रहे हैं।