केन्द्र सरकार ने अगले साल अप्रेल से शुरु होने वाले एनपीआर यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ पॉपुलेशन करवाने का निर्णय लिया है और इसके लिए चार हजार करोड़ रुपए का बजट भी मंजूर कर दिया है। सीएए और एनसीआर के विरोधियों का कहना है कि एनपीआर एनसीआर की पहली सीढ़ी है। इसके लिए पहले समझते हैं कि एनपीआर क्या है ? एनपीआर यानि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर। दिवंगत अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने नागरिकता अधिनियम में 2003 में बदलाव किए थे। अधिनियम की धारा 14(ए) के तहत एनआरसी को कानूनी रुप दिया गया और इसे नागरिकता (नागरिकों का रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र ) नियम-2003 बनाया गया। इन्हीं नियमों के तहत एनआरसी भी आती है।
नियम 2(आई) के अनुसार पॉपुलेशन रजिस्टर वह है जिसमें एक गांव या ग्रामीण इलाके या कस्बा या वार्ड या किसी कस्बे या शहर के वार्ड के चिन्हित एरिया में लोग रहते हों। रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के अनुसार एनपीआर का अर्थ देश में आमतौर पर रहने वाले लोगों का रजिस्टर है। आमतौर पर रह रहे नागरिक का मतलब किसी जगह पर छह महीने या ज्यादा समय से रह रहे और अगले छह महीने से ज्यादा समय के लिए रहने की इच्छा रखने वाले से है।
2010 की एनपीआर में नागरिकों से ली गई जानकारी
– व्यक्ति का नाम
– घर के मुखिया से संबंध
– पिता का नाम
– माता का नाम
– जीवनसाथी का नाम (विवाहितों के लिए )
– लिंग
– जन्म तिथि
– वैवाहिक स्थिति
– जन्म स्थान
– राष्ट्रीयता
– आमतौर पर रहने वाली जगह का वर्तमान पता
– वर्तमान पते पर रहने की अवधि
– घर का स्थाई पता
– व्यवसाय
– शैक्षणिक योग्यता
कौन तैयार करता है एनपीआर ?
एनपीआर केन्द्र सरकार के संरक्षण में तैयार होता है। नागरिकता कानून के नियम 3(4) के तहत केन्द्र सरकार एनपीआर शुरु करने की तारीख तय करती है। एनपीआर के लिए 2011 की जनगणना की हाउस लिस्टिंग के साथ पहली बार डाटा 2010 में एकत्रित किया था और 2015 में घर-घर जाकर अपग्रेड किया गया। केन्द्रीय गृह मंत्रालय 31 जुलाई,2019 को आसाम को छोड़कर पूरे देश में एनपीआर शुरु करने के लिए अधिसूचना जारी कर चुका है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया एनपीआर की रजिस्ट्रेशन ऑथोरिटी हैं और वही एनआरसी की भी रजिस्ट्रेशन ऑथोरिटी हैं।
एनपीआर और जनगणना में अंतर
जनगणना एक्ट-1948 के तहत जनगणना होती है। जनगणना के डेटा बिना सत्यापन के स्वेच्छा से बताई गई जानकारी है। जबकि एनपीआर नागरिकता नियम-2003 के तहत होता है। इसमें व्यक्ति के लिए डेमोग्राफिक यानि जनसंख्या संबंधी डेटा देना आवश्यक है। जानकारी नहीं देने वाले पर जुर्माना लग सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि जनगणना और एनपीए दोनों की जिम्मेदारी रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और जनगणना आयुक्त की है।
एनआरसी क्या है ?
एनआरसी का अर्थ है नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजन्स। नागरिकता कानून की धारा 14ए के तहत केन्द्र सरकार को प्रत्येक नागरिक का रजिस्ट्रेशन करना, उसे पहचान पत्र जारी करना और नेशनल रजिस्ट्रेशन ऑथोरिटी गठित करके भारतीय नागरिकों का एक नेशनल रजिस्टर रखना जरुरी है। 2003 के नियमों के नियम 3(1) के तहत रजिस्ट्रार जनरल के लिए भारतीय नागरिकों का रजिस्टर बनाना जरुरी है। नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के जिला,उप-जिला और स्थानीय स्तर पर भी रजिस्टर होंगे।
क्या एनपीआर और एनआरसी में कोई संबंध है ?
2003 के नियमों को पढऩे से साफ है कि एनपीआर ही एनआरसी की नींव है। नियम 3(5) के अनुसार भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर में जानकारी पॉपुलेशन रजिस्टर से प्रमाणित होने पर ही दर्ज की जाएगी। नियम 4(3) के अनुसार एनआरसी के लिए पहले एनपीआर के स्थानीय रजिस्टर से जानकारियों को प्रमाणित किया जाएगा और इसके बाद संदिग्ध नागरिकों को बाहर करके एनआरसी फाइनल होगा। नियम 4(4) के तहत स्थानीय रजिस्टर एनपीआर से जानकारी प्रमाणित करने के बाद किसी भी नागरिक को संदिग्ध घोषित कर सकता है। इसकी जानकारी संबंधित व्यक्ति या परिवार को एक निश्चित फार्म में दी जाएगी और अग्रिम जांच होगी। संदिग्ध नागरिकों को एनआरसी से हटाने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाएगा। इसके बाद स्थानीय स्तर की ड्राफ्ट एनआरसी प्रकाशित होगी और आमजन को इस पर आपत्तियां दर्ज करने का मौका दिया जाएगा और आपत्तियों के निपटारे के बाद फाइनल एनआरसी जारी होगी।
क्या एनपीआर एनआरसी का पहला कदम है ?
यह आवश्यक नहीं है कि एनपीआर के बाद एनआरसी तैयार ही की जाए। क्यों कि 2010 में पहली बार एनपीआर बनी और 2015 में इसे अपग्रेड किया गया लेकिन इसके बाद एनआरसी नहीं बना। लेकिन 2003 के नियमों के अनुसार एनपीआर के बाद ही एनआरसी तैयार हो सकता है इसलिए एनआरसी के लिए एनपीआर तैयार करना पहली शर्त है। खास बात यह है कि 2020 की एनपीआर में पूछे जाने वाले सवाल 2010 में एनपीआर से अलग हैं। 2020 की एनपीआर में प्रत्येक नागरिक को अपने माता-पिता का जन्मस्थान भी बताना होगा। नागरिकता कानून 1955 में 1987 और 2003 के संशोधन के बाद जन्म के आधार पर नागरिकता व्यक्ति के माता-पिता की नागरिकता के आधार पर तय करने में प्रमुख फैक्टर होगा और यह एनपीआर और एनआरसी में संबंध को दर्शाता है।
एनआरसी से समस्या क्या है ?
देश में बरसों से रह रहे व्यक्तियों का दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता साबित करना मुश्किल होगा विशेषकर तब जबकि देश की बड़ी आबादी अशिक्षित और पिछड़ी हो। इससे नौकरशाही को हावी होने और भेदभाव करने का मौका मिलेगा…इसका ताजा उदाहरण आसाम में हुई एनआरसी है जहां 20 लाख लोग बाहर रह गए हैं। आसाम में भेदभावपूर्ण तरीके से लोगों को एनआरसी से बाहर रखने की शिकायतें भी आई हैं। इसके साथ ही संदिग्ध नागरिक की अजीब श्रेणी सिरे से ही मनमानी और प्रशासनिक व्याख्या पर आधारित होगी ना ही इस निरंकुश शक्ति के प्रयोग के लिए कोई गाइडलाईंस ही तय हैं। यदि किसी को संदिग्ध नागरिक बताया गया तो उसका क्या होगा इसका नियमों मंे कोई उल्लेख नहीं है लेकिन ,2019 में विदेशी(ट्रिब्यूनल) आर्डर 1964 में संशोधन करके जिलाधीश को संदिग्ध नागरिक के मामले को विदेशी ट्रिब्यूनल को रैफर करने की शक्तियां दी हैं। इसके अलावा नियम 4(6)(ए) भी एक भारी परेशानी वाला होगा। इस नियम के तहत कोई भी व्यक्ति स्थानीय एनआरसी रजिस्टर में शामिल किए गए किसी व्यक्ति पर आपत्ति कर सकता है। इस नियम की दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं विदेशी ट्रिब्यूनल अद्र्ध-न्यायिक संस्था है और इनमें प्रशासनिक अधिकारी बिना किसी ज्यूडिश्यल ट्रेनिंग के सर्वेसर्वा होगें। इन ट्रिब्यूनल के लापरवाही और असंवेदनशील होकर काम करने और बिना कारणों के आदेश देने की रिपोर्ट भी सामने आई हैं। इसलिए एनआरसी अधिकारियों के विवेकाधीन शक्तियों का मनमाना या दुरुपयोग भयानक हो सकता है क्यों कि इससे किसी भी व्यक्ति को गैर-कानूनी घोषित किया जा सकता है।
क्या सीएए और एनआरसी में कोई संबंध है ?
सीएए और एनआरसी में कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है लेकिन गृह मंत्री अमित शाह 2019 के चुनाव में एनआरसी लाने के बयान देते रहे हैं। सीएए का फायदा संभावित देशव्यापी एनआरसी से बाहर रहने वाले गैर-मुस्लिमों को होगा। शर्त यह है कि उन्हें साबित करना होगा कि वह पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धर्म के कारण प्रताडि़त होकर 31 दिसंबर,2014 से पहले वह भारत में आ गए थे। इसके अलावा आसाम एनआरसी पर सीएए का प्रभाव भी देखने वाला होगा।