Budget and Film Industry: इस साल भी फिल्मी दुनिया से किसी बड़े चेहरे का नहीं बल्कि अशोक पंडित और गिरीश जौहर जैसे एक दो ट्रेड एनालिस्ट का बयान ही बजट के बाद आया कि फिल्म इंडस्ट्री को बजट से काफी निराशा हुई है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अभी भी भारत में फिल्म या एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को इंडस्ट्री का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। कई बार आधे अधूरे ऐलान जरूर केन्द्र व महाराष्ट्र सरकार ने किए, लेकिन धरातल पर कुछ निकलकर नहीं आया। नतीजा यह हुआ कि आज भी फिल्म इंडस्ट्री असंगठित तरीके से चल रही है। कभी बैंकों से तो कभी बड़े बिजनेस हाउस से कुछ एक फिल्मों को लोन मिल जाता है, नहीं तो ज्यादातर फिल्में प्रॉपर्टी डीलर्स के पैसों, काली कमाई को सफेद करने वालों या कई सारे फिल्मी दुनिया के व्यक्तिगत पैसों के निवेश से बन रही हैं।
मोटे तौर पर माना जाता है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ही फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े मामलों और उससे जुड़ी सरकारी संस्थाओं को देखता है। लेकिन कई मामलों में फिल्म इंडस्ट्री वालों का वास्ता संस्कृति मंत्रालय से भी पड़ता है। ऐसे में फिल्म इंडस्ट्री को क्या मिला, ये जानने के लिए आपको इन दोनों मंत्रालयों से जुड़ी उन सभी संस्थाओं या मदों को मिले इस साल के बजट को जानना पड़ेगा, जिनका सीधा संबंध फिल्म इंडस्ट्री या उनके लोगों से पड़ता है।
फिल्म इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा वास्ता पड़ता है नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NFDC) से। 1975 में स्थापित हुई ये संस्था सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त कम्पनी है, जो फिल्म इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए फिल्म फेस्टिवल्स, फिल्म-डॉक्यूमेंट्री को अनुदान, कई तरह की वर्कशॉप और ट्रेनिंग कोर्सेज या मास्टर क्लासेज आदि चलाने की गतिविधियों में रहती है। एक जनवरी से इसको और मजबूती दे दी गई है, इसके साथ फिल्म्स डिवीजन, दिल्ली फिल्म निदेशालय, चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी और नेशनल फिल्म आर्काइव्स (पुणे) को भी इसी के बैनर के तहत ला दिया गया है।
खास बात है कि इस बार सूचना प्रसारण मंत्रालय के बजट में करीब 500 करोड़ की बढोत्तरी की गई है। कुल बजट में से 600 करोड़ रुपए प्रसार भारती के लिए रखे गए हैं, जो उसके आधारभूत ब्रॉडकास्टिंग ढांचे को और मजबूत करने के लिए है। ये बड़ी रकम है और फिल्म इंडस्ट्री का सीधा संबंध हमेशा से ही प्रसार भारती से रहता है। इसका फायदा स्टूडियो निर्माण, संचार और शूटिंग उपकरण उपलब्ध करवाने वाली और सीरियल निर्माण से जुड़ी फिल्म इंडस्ट्री की कम्पनियों को मिलना तय है। यूं एनएफडीसी कई माध्यमों से वित्त जुटाती है, फिर भी सरकार ने उसका बजट सपोर्ट दोगुना किया है। पिछले साल के 10.3 करोड़ के मुकाबले इस साल 20.38 करोड़ का बजट इस साल एनएफडीसी को मिला है। जबकि आईईबीआर (अंदरूनी और अतिरिक्त बजट संसाधन) 356.24 करोड़ है।
सूचना प्रसारण मंत्रालय के बजट में प्रसार भारती का हिस्सा सबसे ज्यादा होता है। पिछले साल के 2764.5 करोड़ के मुकाबले इस साल प्रसार भारती को बजट में 2808.36 करोड़ रुपए मिले हैं, यानि 44 करोड़ ज्यादा। 600 करोड़ रुपए ब्रॉडकास्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क विकास के लिए अलग से मिले हैं। इस साल भी कई फिल्मों से जुड़ी कई कम्पनियों को दूरदर्शन और बाकी चैनल्स में काफी शोज मिले। इस बजट के बढ़ने से छोटे प्रोडयूसर्स को भी लाभ होगा, ऐसा माना जा रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के फिल्म प्रशिक्षण से जुड़े दो संस्थान हैं।
पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट और सत्यजीत रे फिल्म्स एंड टेलीवीजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता। दोनों का ही बजट सरकार लगातार बढ़ाती जा रही है। लेकिन इस साल पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई) का बजट करीब 4 करोड़ रुपए कम कर दिया है। पिछले साल 68.75 करोड़ आवंटित हुए थे, इस साल केवल 64.74 करोड़ ही मिलेंगे। हालांकि दो साल पहले ये बजट केवल 42.67 करोड़ था। जबकि कोलकाता के सत्यजीत रे इंस्टीट्यूट को पिछले साल के 60.10 करोड़ के मुकाबले 95.13 करोड़ का बजट आवंटन मिलना सुखद है। माना ये भी जाता है कि पब्लिसिटी के खाते में जो 391 करोड़ का बजट रखा गया है, उसका फायदा भी छोटे एडमेकर्स और शॉर्ट फिल्म्स, ड़ॉक्यूमेंट्री बनाने वाली या मीडिया कम्पनियों को मिलता है। जबकि आर्ट एंड कल्चर मद में रखे गए 28 करोड़ में से कुछ हिस्सा फिल्मी हस्तियों और इवेंट मैनेजमेंट कम्पनियों को मिलना भी तय है।