अनादि न्यूज़

सबसे आगे सबसे तेज

धर्म - ज्योतिष

Assam में बने कामाख्या मंदिर का अनोखा है इतिहास, आप भी ये बातें जानकर हो जाएंगे हैरान

संदीप गौतम, अनादि न्यूज़ डॉट कॉम ,धर्मं समाज। देशभर में पूजा जाता है कामाख्या मंदिर, जानिए क्या है इस मंदिर का अनोखा इतिहास। कब और कैसे हुई इस मंदिर की शुरुआत…कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किमी दूर है, ये शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किमी की दूरी पर स्थित है, जहां न केवल देश के लोग बल्कि अलग-अलग देशों से भी इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं, ये मंदिर हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख स्थल है। आइए यहां जानें इस मंदिर से जुड़ी आस्थाओं के बारे में….

एक ऐसा मंदिर जिसमे किसी देवी की पूजा नहीं होती हैं। एक ऐसा दैवीय स्थल जो तांत्रिक विधाओं का गढ़ हैं, असम के गुवाहाटी में स्थित इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती हैं। कामाख्या मंदिर का अपना अलग ही इतिहास हैं। चलिए इस पोस्ट में हम आपको इस कामाख्या देवी मंदिर के बारे में कुछ अद्भुत और रोचक तथ्य बताएँगे, जिनको जानकर आप हैरान रह जायेंगे। कामाख्या मंदिर का इतिहास और कहानी को विस्तार से जानेंगे, उसके पहले आप यह जान लीजिये कि कामाख्या का अर्थ क्या हैं और कामाख्या मंदिर कहाँ स्थित हैं?

कामाख्या का अर्थ क्या है?

असम में स्थित इस मंदिर की “देवी का नाम कामाख्या हैं”. कामाख्या का अर्थ सकारात्मक भाव से जुड़ा हुआ हैं. कामाख्या का अर्थ – “इच्छाओं को पूरी करना” होता हैं. कामाख्या की देवी सबकी इच्छाओं को पूरा करती हैं. कामाख्या मंदिर के पंडित तांत्रिक विद्या में अति निपुण हैं।

कामाख्या मंदिर कहाँ स्थित हैं?

पूर्वोतर भारत के असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर की दूरी गुवाहाटी शहर में यह मंदिर स्थित हैं. गुवाहाटी के रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं. कामाख्या मंदिर नीलांचल की पहाड़ियां पर स्थित हैं. गुवाहाटी को पूर्वोतर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता हैं. कामाख्या मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित हैं. जो की प्राकृतिक छटा से ओतप्रोत हैं.
चलिए अब हम आपको बताते हैं की कामाख्या मंदिर का निर्माण कब हुआ था?

कामाख्या मंदिर कब बना था?

कामाख्या मंदिर का इतिहास और रहस्य(kamakhya devi temple history in hindi) हम आगे बताएँगे, पहले आप ये जान लीजिये इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था और किसने करवाया था, कामाख्या देवी का मंदिर 1565 में बना था। 1498 इस्वी में हुसैन शाह ने इस मंदिर को खंडर में बदल दिया था, इसमें यह विवाद भी हैं की इस मंदिर को कालापहाड़ ने तोड़ा था, लेकिन कालापहाड़ का राज्यकाल 1566-1572 तक का हैं, लेकिन 1565 में इस मंदिर का पुन: जीर्णोद्वार हो चुका था। जब इस मंदिर को तोड़ा गया था, तो कुछ समय बाद यह मिटटी में दब चूका था. कामाख्या देवी इस मंदिर के खंडहरों की खोज बिहार के कोच वंश के संस्थापक विश्वसिंह (1515-1540) ने की थी, फिर वहां पूजा अर्चना पुन: चालू हो गयी, आधुनिक कामाख्या देवी के मंदिर का निर्माण नार नारायण (1540-1587) ने करवाया था. इस मंदिर का निर्माण बंगाल की इस्लामी वास्तुकला में किया गया हैं।

See also  Horoscope Today 28 July 2022: मिथुन, सिंह और कुंभ राशि वालों को हो सकती है धन की हानि, सभी राशियों का जानें राशिफल

यहाँ एक रोचक तथ्य यह हैं कि इस मंदिर के पुन: निर्माण में वह सामग्री भी इस्तेमाल ली गयी, जो खंडहरों के रूप में मिली थी। चलिए अब आप को बताते हैं कि कामाख्या देवी के मंदिर का इतिहास क्या हैं ? आखिर क्या रहस्य हैं कि इस मंदिर में मुर्ति की बजाय एक देवी की योनि की पूजा होती हैं।

कामाख्या मंदिर का इतिहास(kamakhya devi story and history in hindi)

कामाख्या मंदिर का इतिहास(kamakhya devi story) क्या हैं? कामाख्या देवी की उत्पत्ति कैसे हुई? इन सभी सवालों का जवाब इस कथा में निहित हैं।
कामाख्या मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना हैं, इसका संबंध पुराणों से हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा हैं. कामाख्या देवी का संबंध माता सती से हैं, दरअसल बात उस वक्त की हैं जब माता सती और भगवान शिव का विवाह हो चूका था।माता सती के पिता अर्थात राजा दक्ष भगवान शिव को लेकर प्रसन्न नहीं थे, जब कभी राजा दक्ष के घर में कोई मांगलिक कार्य या, यज्ञ आदि होते तो कभी दक्ष शिव को आमंत्रित नहीं करते हैं। एक बार दक्ष ने इसी प्रकार यज्ञ का आयोजन करवाया था, सभी को निमंत्रण दिया शिवाय शिव को छोड़कर, लेकिन भगवान शिव वहां पहुँच गए, तब दक्ष ने बिना बुलाये हाजिर होने के कारण निंदा की, भगवान् शिव वहां से चले गए।

माता सती इस बात को सहन नहीं कर पायी और उसी हवन कुंड में खुद को समर्पित कर भस्म करने की कोशिश की।भगवान शिव को जब इस घटना का पता चला तो वे पुन: वहां हाजिर हो गए, माता सती को हवन कुंड से निकाल कर वहां से कैलाश की तरफ चली गए। भगवान शिव घोर दुःख के साये में चले गये थे, इस वजह से सृष्टि पर असुरों का प्रकोप बढ़ गया था, तब भगवान शिव के मोह को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र फेंका और सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के शरीर के 51 टुकड़े जहां गिरे इन सभी स्थानों को शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता हैं। इस प्रकार कुल 51 शक्ति पीठ हैं, इन सभी सती-पीठो में से कामाख्या शक्ति पीठ सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्राचीन मंदिर हैं। कामाख्या में माता सती का योनि का भाग गिरा था, इसलिए यहाँ किसी देवी की नहीं बल्की एक योनि की पूजा होती हैं, जो की हर-वक्त फूलों से ढकी रहती हैं।

See also  धनु, तुला राशि वाले जातक सावधान रहें, बुरी खबर प्राप्त हो सकती है, स्वास्थ्य को लेकर भी रहें अलर्ट, जाने आज का राशिफल

कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य:

अब हम आपको कामाख्या देवी मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताने वाले हैं, ये तथ्य इतने रोचक हैं आप वाकई में हैरान रह जायेंगे, अगर आप कभी पूर्वी भारत में यात्रा करने जाये तो एक बार यहाँ जरूर जाकर आये, यहाँ की तांत्रिक विधा बहुत ही कारगर हैं, लोग कर्म कांड या कर्म सिद्धि कराने के लिये यहाँ मुराद लेकर जाते हैं, चलिए अब हम आपको कामाख्या देवी मंदिर के रहस्य मयी तथ्यों के बारे में बताते हैं।

कामाख्या मंदिर में प्रसाद के रूप में एक कपड़ा दिया जाता हैं:

कामाख्या मंदिर में जो भी श्रदालु भक्त आते हैं उनको प्रसाद के रूप में एक वस्त्र दिया जाता हैं, इस वस्त्र को “अम्बुवाची” वस्त्र कहा जाता हैं. इसके पीछे का रहस्य यह हैं कि महीन में तीन दिन के लिए कामाख्या देवी को रजस्वला होता हैं, जिसके चलते उनके आस पास एक सफ़ेद कपड़ा बिछा दिया जाता हैं। तीन दिनों के बाद जब मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो वह कपड़ा लाल रंग की अवस्था में मिलता हैं। इस कपडे को भक्तों में प्रसाद के रूपमे वितरित किया जाता हैं, हालाँकि इस लाल कलर को लेकर कुछ विवाद व्याप्त हैं।

कामाख्या का अम्बुवाची मेला प्रसिद्ध हैं:

कामाख्या में जून के महीने में मेला लगता हैं, इस मेले को तांत्रिक प्रजनन और अमेठी के नाम से भी जाना जाता हैं, इस मेले के दौरान चार दिन के लिए मंदिर के पट बंद रहते हैं, दरअसल इन चार दिनों के लिए माता विश्राम करती हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी पारंपरिक महिलाओं के मासिक धर्म की तरह चार दिनों तक विश्राम करती हैं।
इन चार दिनों के लिए वहां पर रहने वाले लोग अपने धार्मिक काम को स्थगित कर देते हैं, सभी कृषि कार्य जैसे खुदाई, जुताई, बुवाई और फसलों की रोपाई बंद कर दी जाती हैं, विधवाएं, ब्रह्मचारी और ब्राह्मण इन दिनों में पके हुए भोजन से परहेज करते हैं, और धार्मिक पुस्तकों को पढने से बचते हैं।

कामाख्या देवी क्यों प्रसिद्ध है?

कामाख्या देवी का मंदिर इसलिए प्रसिद्ध हैं, क्योंकि सबसे पहले, यहाँ किसी देवी की पूजा नहीं की जाती हैं, दूसरा यह कि यहाँ पर लगने वाले धार्मिक मेले में प्रसाद के स्थान पर कपडा दिया जाता हैं, तीसरा यह कि यहाँ ब्रह्मपुत्र नदी तीन दिन के लिए लाल हो जाती हैं, चौथा यहं की तांत्रिक विद्या चमत्कारी रूप से सिद्ध होती हैं. इसलिए कामाख्या देवी का मंदिर प्रसिद्ध हैं।

See also  धीरेंद्र शास्त्री 24 से 30 तक सागर में कथा करेंगे, सुरक्षा के भारी इंतजाम

कामाख्या मंदिर में किसकी पूजा की जाती है ?

कामाख्या मंदिर की कथा से आप यह जान गए होंगे कि इस मंदिर की उत्पत्ति कैसे हुई, कामाख्या मंदिर में किसी देवी की मूर्ति की पूजा नहीं होती हैं, बल्कि एक योनि के भाग की पूजा की जाती हैं। यह कामाख्या की देवी का अंग हैं।

ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल क्यों होता हैं ?

कामाख्या मंदिर में जून महीने में एक मेला लगता हैं, इस मेले को अम्बुवाची के नाम जाता हैं, इस मेले के दौरान पास में बहने वाली नदी का पानी लाल हो जाता हैं, ऐसा माना जाता हैं कि इस नदी के पानी के लाल होने के पीछे देवी का चमत्कार हैं. इसके पीछे यह तथ्य हैं कि इन तीन दिनों तक देवी का मासिक धर्म चलता हैं।

मंदिर का दृश्य:

कामाख्या देवी का मंदिर एक मधुमखी के छते के समान हैं. पिलर पर हिन्दू धर्म के देवताओ की मुर्तिया उभारी गयी हैं. कामाख्या देवी के मंदिर के अलावा यहाँ दस दुसरे मंदिर भी स्थित हैं।

कामाख्या की तांत्रिक विद्या:

पूर्वात्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिर की तांत्रिक विद्या से सैंकड़ों भक्तो की इच्छाएं पूरी होती हैं. पूरे भारत वर्ष से लोग अपनी मुरादे लेकर यहाँ आते हैं, यहाँ के पंडितों की खासियत यह हैं कि वे केवल सही मुरादो पर ही अपनी विद्या को आजमाते हैं, गलत या किसी को नुक्सान या कष्ट पहुँचाने के लिए इस विद्या का उपयोग नहीं करते हैं।

कामाख्या मंदिर बंद कब रहता हैं:

प्रत्येक महीने में तीन दिन के लिए कामाख्या का मंदिर बंद रहता हैं। इन तीन दिनों के लिए माता का मासिक धर्म चलता हैं।