हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित परसा कोल ब्लाॅक के लिए 26 अप्रैल की रात सैकड़ों पेड़ काट दिए गए। इसके लिए बकायदा पुलिस का इंतजाम हुआ था। अब वन विभाग ने केंद्र सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को लिखित रूप से बताया है कि उस क्षेत्र में अभी पेड़ों की गिनती चल रही है। किसी को पेड़ काटने की अनुमति तो दी ही नहीं गई है!
परसा कोल ब्लॉक से प्रभावित गांवों में लोग पिछले 75 दिनों से धरने पर बैठे हैं। गांव के लोग पेड़ों की रखवाली कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया, 26 अप्रैल की आधी रात के बाद कंपनी के मजदूर पुलिस के साथ पेड़ काटने पहुंचे थे। ग्रामीणों को कुछ घंटे बाद इसका पता चला तो वहां हंगामा हो गया। विरोध को देखते हुए पेड़ काटने वाले वहां से चले गए। तब तक सैकड़ों पेड़ काटे जा चुके थे। बताया जा रहा है कि इस कोल ब्लॉक के लिए करीब 2 लाख पेड़ काटे जाने हैं। इसके आधार पर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से शिकायत की थी। उनका कहना था, वन क्षेत्र और बाघ की मौजूदगी वाली जगहों पर वनों की कटाई से पहले NTCA और राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड से अनुमति जरूरी होती है। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
29 अप्रैल को NTCA ने छत्तीसगढ़ में मुख्य वन्य जीव संरक्षक को पत्र भेजकर जवाब मांगा था। इसका जवाब देते हुए मुख्य वन संरक्षक की ओर से कहा गया है, परसा ओपनकास्ट कोल माइनिंग क्षेत्र के 841.538 हेक्टेयर क्षेत्र में से पहले साल यानी 2022-23 में 43.18 हेक्टेयर क्षेत्र में ही पेड़ों की कटाई होनी है। उसमें वृक्षों की गणना का काम प्रगति पर है। वृक्षों की कटाई की अनुमति वर्तमान में नहीं दी गई है। अब सवाल उठ रहा है कि वन विभाग ने अनुमति नहीं दी तो वे कौन से लोग थे, जिन्होंने पुलिस की मौजूदगी में सैकड़ो पेड़ काट डाले। पेड़ों की अवैध कटाई हुई तो वन विभाग ने ऐसे लोगों के खिलाफ कौन सी कार्रवाई की?
ICFR रिपोर्ट की सिफारिशों का हवाला देकर खनन अनुमति को जायज ठहराया
वन विभाग की ओर से भेजे गए जवाब में भारतीय वन्य जीव अनुसंधान संस्थान (ICFR) की रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर खनन की अनुमति को जायज ठहराने की कोशिश हुई है। वन विभाग ने लिखा है, ICFR रिपोर्ट में कोयले की मांग, सामाजिक-आर्थिक और औद्योगिक विकास को ध्यान में रखकर सिफारिश थी कि जो खदानें पहले से खुली हैं अथवा वैधानिक मंजूरी के अग्रिम चरण में हैं, उनमें खनन के लिए स्वीकृति देने पर विचार किया जा सकता है। परसा कोल ब्लॉक भी इसी श्रेणी में है। ऐसे में इसमें खनन को मंजूरी देकर कुछ अनुचित नहीं किया गया है।
बाघ की मौजूदगी को भी नकारा
वन विभाग ने इस रिपोर्ट में परसा कोल ब्लॉक के लिए प्रस्तावित क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी से भी इनकार कर दिया है। लिखा गया है, वन मंडलाधिकारी कोरबा की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में कोरबा वन मंडल में बाघ की मौजूदगी के कोई चिह्न नहीं मिले हैं। यह क्षेत्र निकटतम बाघ कॉरिडोर से 78 किलोमीटर दूर है। लेमरु हाथी रिजर्व से भी इसकी दूरी 2.2 किलोमीटर है। यह हाथी और बाघ कॉरिडोर से दूर है ऐसे में इस क्षेत्र में खनन की मंजूरी के लिए अलग से NTCA की अनुमति मांगने की जरूरत नहीं है।
भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट में बाघ का दावा
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने रिपोर्ट मे कहा था, इस क्षेत्र में दुर्लभ, संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय वन्य प्राणी थे और भी हैं। इस क्षेत्र में पूरे वर्ष भर हाथी रहते हैं। यहां तक कि कोरबा वन मंडल में, हसदेव अरण्य कोलफील्ड क्षेत्र के पास बाघ भी देखा गया है। यह क्षेत्र अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण और कान्हा टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है। यहां कई तरह के प्राणी कैमरे में कैद हुए हैं। इसमें सूची एक के हाथी, भालू, भेड़िया, बिज्जू, तेंदुआ, चौसिंगा, रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, विशाल गिलहरी और पैंगोलिन शामिल हैं। सूची-2 के सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, लाल मुह के बन्दर, लंगूर, पाम सीवेट, स्माल सीवेट, रूडी नेवला, कॉमन नेवला की मौजूदगी है। यहां सूची-3 में शामिल लकड़बग्घा, स्पॉटेड डिअर, बार्किंग डिअर, जंगली सूअर, खरगोश और साही की भी मौजूदगी है।