कोलंबो, रायटर्स। भारत ने आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद के संकेत दिए हैं। इस क्रम में भारत के शीर्ष राजनयिक ने गुरुवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से बात की। सात दशक में पहली बार श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार पर है। भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने राजधानी कोलंबो में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात की।
बता दें कि श्रीलंका में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन के नेतृत्व में भारत सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल आज ही आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए श्रीलंका पहुंचा। वह वहां की वित्तीय जरूरतों का आकलन करेगा। प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को अब एकमात्र विदेशी मुद्रा भंडार से उम्मीद है। उन्होंने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करके ही सुलझाया जा सकता है। ऐसा करने के लिए सबसे पहले विदेशी मुद्रा भंडार के संकट का समाधान करना होगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्विटर पर कहा, ‘श्रीलंका की मदद के लिए भारत तैयार है। इसके लिए निवेश, कनेक्टीविटी और आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाते हुए श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने का प्रयास किया जाएगा।’
इस क्रम में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही पूर्ण समर्थन और सहयोग देने का आश्वासन श्रीलंकाई उच्चायुक्त मिलिंदा मोरागोडा को दिया है। उन्होंने श्रीलंका को लगातार सहयोग देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का आभार जताया। इसके जवाब में वित्त मंत्री ने बदहाल हो चुकी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की सुधार प्रक्रिया में सहयोग करते रहने का आश्वासन दिया।
श्रीलंका में भोजन, दवा और रसोई गैस जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत है। हाल में ही प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा था कि भारत से मिल रही वित्तीय सहायता धर्मार्थ दान नहीं बल्कि ऋण है और इसे चुकाने की योजना होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत से चार अरब अमेरिकी डालर का कर्ज लिया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमने भारत से और अधिक ऋण देने का अनुरोध किया है, लेकिन वह भी इस तरह लगातार हमारा साथ नहीं दे पाएगा। उसकी भी अपनी सीमाएं हैं।’