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श्रीकृष्ण की जीवन यात्रा: कारागार से प्रारम्भ होकर संसार के लिए कल्पतरू बनी

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, धर्म दर्शन। आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। विश्व संस्कृति के इतिहास में मात्र कृष्ण ही ऐसे हैं, जिनकी जीवन यात्रा कारागार से शुरू होकर कल्पतरू बनी। राम और कृष्ण, विष्णु के दो मनुष्य रूप हैं, जिनका अवतार धरती पर धर्म को बचाने और अधर्म को रोकने के लिए हुआ था। राम और कृष्ण भारतीय चेतना के दो वाहक चरित्र है। राम धरती पर त्रेता में आए, जब धर्म इतना पतित नहीं हुआ था। वह आठ कलाओं से युक्त थे, इसलिए मर्यादित पुरूष थे। कृष्ण द्वापर में आए, जब अधर्म का बोलबाला था। वे सोलह कलाओं से युक्त थे और इसलिए एक संपूर्ण पुरूष थे।

राम का जीवन उदात्त मानवीय आचरणों से देवोपम बनने की कहानी है, जबकि कृष्ण पहले ऐसे देवता है, जो निरंतर मनुष्य बनने की कोशिश करते रहे और अनुभव कराते रहे कि देवता बनने से कही अधिक कठिन है मनुष्य बनकर रहना। राम का जीवन जहां मर्यादाओं के सौदर्य और उनके निर्वाह से भरा हुआ है, वही कृष्ण स्थापित या गतिशील मर्यादाओं को तोड़ते और रचते भी हैं। राम और कृष्ण में इस महादेश का बहुत बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास छिपा है।

कृष्ण को काव्यों ने अमर कर दिया। हजारों सालों से कृष्ण भारत के सामूहिक अवचेतन का हिस्सा है। कृष्ण का चरित्र ही ऐसा है कि जिसमें संपूर्ण मानव जीवन समाहित है। इसमें जिंदगी का हर रंग और हर परिस्थिति शामिल है। कृष्ण अपने समय के साधारण मनुष्य थे जो असाधारण कामों को अंजाम देते थे। माखनचोरी करते समय, गोपियों के साथ रास रचाते समय या अर्जुन के सारथी के रूप में साधारण से नजर आने वाले कृष्ण गोवर्धन पर्वत उठाते समय, कालिय नाग का दहन करते समय, सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध करते समय या फिर कुरूक्षेत्र में अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाने वाले और गीता का ज्ञान देने वाले कृष्ण एक साधारण मनुष्य से असाधारण क्षमताओं वाले दिव्य पुरूष में परिवर्तित हो जाते है।

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कृष्ण संपूर्णता का नाम है। कृष्ण मनुष्य हैं। देवता हैं। रहस्य हैं। योगिराज है। गृहस्थ हैं। संत हैं। योद्धा हैं। चिंतक हैं। सन्यासी हैं। लिप्त हैं। निर्लिप्त हैं। कृष्ण मनुष्य के रूपातंरण का सबसे बड़ा प्रतीक है। शायद कृष्ण के जनमानस में गहरे में बस जाने का यह एक कारण हो सकता है।

सच्चाई तो ये है कि श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को किसी भी परिभाषा में बांध पाना संभव नहीं है। इतिहास गवाह है कि हर कला की धुरी कृष्ण पर टिकी है। श्रीकृष्ण रसेश्वर भी है और योगेश्वर भी हैं। कृष्ण ढेरों विरोधों का संगम हैं। नर्तक – योद्धा, सन्यासी – सम्राट, निष्कपट – छलिया, अजातशत्रु – मित्र, चोर – साधु और निर्मोही -प्रेमी। कृष्ण सभी का युग्म हैं।

इसी कारण भारतीय मन पर कृष्ण जितने गहरे तक बसे है, उतना कोई और न बस सका। कृष्णोपदेश के इस सामर्थ्य और कृष्ण के परस्पर विरूद्ध रूपों के प्रभाव के मिश्रण से भारतीय मन संस्कारित हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुकूल कृष्णरूपों को ढालने में पौराणिक कथाकारों को जो सफलता प्राप्त हुई, वैसी सफलता किसी भी धर्म के पौराणिक रचनाकार को, उनके धर्म में स्थित महापुरूषों को, कृष्ण की तरह विविध रूपों में गढ़ने में प्राप्त नहीं हो सकी। इसलिए कृष्ण भारतीय भूमि पर केवल चिरंजीव ही नहीं रहे, अपितु सभी कर्म करने वालों के संरक्षक, दार्शनिक और मार्गदर्शक भी साबित हुए।

18 दिन तक चलने वाले महाभारत युद्ध में प्रेमी, मित्र, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ आदि विभिन्न मानवी रूपों को धारण करने वाले कृष्ण तत्कालीन समाज और राज व्यवस्था में जीवन जीने वाले मनुष्यों के एक प्रतिनिधि थे। महाभारत में कृष्ण का जीवन मूल रूप से अपने से ऊपर उठकर बड़े लक्ष्यों के लिए जीने का संदेश देता है।

कूटनीति, असत्य, अर्धसत्य सब जायज है, परंतु तभी जब लक्ष्य बड़े हों और वैयक्तिक सीमाओं से परे के हों। निजी लाभ के लिए कृष्ण के संदेश नहीं है। कृष्ण की कथा किसी द्वापर युग की कथा नहीं है, किसी ईश्वर का आख्यान नहीं है, किसी अवतार की लीला नहीं है। वह प्रभु की लीला हो ना हो, जीवन लीला का एक महासागर अवश्य है, जिसमें हम अपने लिए कितना जल पा सकते है, यह हम पर निर्भर है।

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