शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 14 चीजें, सावन में गलती से भी शिवलिंग पर न चढ़ाएं ये 7 चीजें, वरना नहीं मिलेगा पूजा का फल
अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, धर्मं दर्शन। हिंदू कैलेंडर का पांचवा महीना सावन मास आज 14 जुलाई से शुरू हो गया है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है। श्रद्धालू इस महीने शिव जी की पूजा करते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं, शिवलिंग पर कुछ खास चीजें अर्पित करने से बड़ा लाभ होता है।
इसके लिए हिंदू धर्म और ज्योतिष में कुछ खास चीजें बताई गई हैं, साथ ही शिव पूजा के कुछ नियम भी बताए गए हैं. इनका पालन जरूर करना चाहिए, शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 14 चीजें धर्म और ज्योतिष के अनुसार शिवलिंग पर 14 चीजों को चढ़ाने से बहुत लाभ होता है. ऐसा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सावन में शिवलिंग पर ये चीजें चढ़ाने से बीमारियां दूर होती हैं:
ये 14 चीजें – जल, दही, दूध, घी, इत्र, बेलपत्र, धतूरा, आक या चमेली का फूल, शहद, मिश्री, गंगाजल, सरसों का तेल, कुशा का जल और गन्ने का रस हैं।
- कष्टों-दुखों से निजात मिलती है।
- शत्रुओं का नाश होता है।
- साथ ही जीवन में धन, सुख-समृद्धि, शांति, प्यार बढ़ता है।
- कामों में सफलता मिलती है।
- संतान सुख मिलता है।
- दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
लेकिन शिवलिगं पर न चढ़ाएं ये चीजें:
वहीं धर्म-शास्त्रों में शिवलिंग पर कुछ चीजें चढ़ाने की सख्त मनाही भी की गई है, शिव पूजा में कुछ चीजों का इस्तेमाल गलती से भी नहीं करना चाहिए, इनके पीछे कारण भी बताए गए हैं, उदाहरण के लिए शिव को संहार का देवता माना गया है इसलिए उन्हें सिंदूर अर्पित नहीं करना चाहिए क्योंकि सिंदूर सुहाग की निशानी है, वहीं केतकी के फूल को भगवान शिव ने श्राप दिया था।
कुमकुम या सिंदूर
यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाना अशुभ माना जाता है।
टूटे हुए चावल
शास्त्रों में कहा गया है कि कभी भी भगवान भोलेनाथ को टूटे हुए चावल अर्पित नहीं किए जाते हैं क्योंकि टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है।
तुलसी
शिवपुराण के अनुसार जालंधर नाम का असुर भगवान शिव के हाथों मारा गया था। जालंधर को एक वरदान मिला हुआ था कि वह अपनी पत्नी की पवित्रता की वजह से उसे कोई भी अपराजित नहीं कर सकता है। लेकिन जालंधर को मरने के लिए भगवान विष्णु को जालंधर की पत्नी तुलसी की पवित्रता को भंग करना पड़ा। अपने पति की मौत से नाराज तुलसी ने भगवान शिव का बहिष्कार कर दिया था। इसलिए शिवजी को तुलसी नहीं चढ़ाया जाता है।
तिल
तिल या तिल से बनी कोई चीज भगवान शिव को नहीं चढ़ानी चाहिए क्योंकि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है।
केतकी का फूल
शिवपुराण की कथा के अनुसार केतकी के फूल एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले।
छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
शंख जल
कहा जाता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।