पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि राज्यसभा की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी विधेयक को जल्दबाजी में पारित न होने दे और प्रवर समितियों के माध्यम से उसका अधिक गहराई अध्य्यन कराए।
राज्यसभा के 250वें सत्र के पहले दिन उच्च सदन में ‘भारतीय शासन व्यवस्था में राज्यसभा की भूमिका और आवश्यकता’ पर चर्चा के दौरान डॉ. सिंह ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि प्रवर समितियों में अधिक अच्छी तरह से विधेयकों की जांच हो। इन समितियों में न केवल सदस्य बल्कि विशेषज्ञ और हितधारकों भी राय देते हैं। 16वीं लोकसभा में पेश किए गए विधेयकों में से केवल 25 प्रतिशत ही समितियों को संदर्भित किये गए। यह आंकड़ा 15वीं और 14वीं लोकसभा के 71 और 60 प्रतिशत से बहुत कम है।
मनमोहन सिंह ने विधेयकों को धन विधेयक के तौर पर पेश किए जाने का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि दोनों सदनों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि संविधान का अनुच्छेद 110 धन विधेयक के मामलों में लोकसभा की अनुमति को महत्व देता है। हाल के दिनों में कार्यपालिका द्वारा धन विधेयक प्रावधान के दुरुपयोग के उदाहरणों को देखा है, जिसके कारण राज्यसभा को महत्वपूर्ण विधयकों पर चर्चा से दरकिनार किया गया।
डॉ. सिंह ने कहा कि संविधान बनाते समय दूसरे सदन की अवधारणा के पीछे तीन कारण दिए गए थे। संविधान निर्माताओं को उम्मीद थी कि राज्यसभा विधेयकों पर गरिमामयी बहस सुनिश्चित करेगा। इससे जुनूनी तौर पर कानून पारित होने में देरी होगी। इसके अलावा राजनीतिक मैदान में उतर नहीं सकने वाले अनुभवी लोगों को अवसर मिलेगा। राज्यसभा को लोकसभा में बहुमत वाली सरकार को नियंत्रण एवं संतुलित बनाए रखने में एक केंद्रीय भूमिका है। इसके साथ ही इसकी अन्य महत्वपूर्ण भूमिका देश के संघीय ढांचे में राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करना है।