लोकसभा और राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पास हो चुका है। जिसके बाद इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मंजूरी मिल गई है। इसी के साथ यह कानून बन गया है। देशभर के विभिन्न राज्यों में मुस्लिम समुदाय के लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध जोर शोर से कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि मुस्लिम समुदाय के लोग क्यों नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर रहे हैं? आखिर इसमें मुसलमानों के खिलाफ क्या है जिसकी वजह से उग्र विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। लेकिन मुस्लिम समुदय के विरोध से पहले नागरिकता संशोधन बिल क्या यह जानना बेहद जरूरी है।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल (सीएबी) नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया गया। क्योंकि नागरिकता संशोधन बिल (कैब) 1955 के हिसाब से किसी अवैध प्रवासी को देश की नागरिकता नहीं दी जा सकती है। लेकिन कैब दोनों सदनों में पास हो चुका है और यह राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बन गया है। अब नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।
लेकिन केंद्र सरकार ने इस बिल में पड़ोसी मुल्क से आए मुसलमानों को शामिल नहीं किया है। बता दें कि भारत में नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। कैब में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है। नागरिकता कानून बनने के बाद यह अवधि 6 साल हो गई है।
मुस्लिम समुदाय के लोग क्यों कर रहे सीएबी का विरोध
कानून बनने के बाद भी मुस्लिम समुदाय के लोग देशभर में केंद्र सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं। क्योंकि इस बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए मुस्लिमों शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है। इस बिल में केवल पड़ोसी देश से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों शरणार्थियों शामिल किया गया है।
यानी इस बिल के कानून बन जाने के बाद अब भारत में हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइ शरणार्थियों भारत की नागरिकता मिल जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि मोदी सरकार धर्म के आधार पर राजनीति कर रही है। इसलिए इस बिल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को शामिल नहीं किया गया है। समुदाय ने सरकार पर देश के हिंदूओं और मुस्लिमों के बीच बंटवारे का आरोप लगाया है। साथ ही विधेयक को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताकर विरोध के स्वर तेज किए हैं।
एनआरसी प्रक्रिया में दिक्कत का डर
मुस्लिमों के विरोध का मुख्य कारण एनआरसी का डर है। गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि पूरे देश में एनआरसी को लागू किया जाएगा। ऐसे में मुस्लिमों को डर है कि कैब के बाद एनआरसी को लागू किया जाएगा। भारत के मूल निवासी होने का प्रमाण पत्र न दे पाने पर उन्हें देश से बाहर निकाला जाएगा। जबकि जो हिंदू हैं उन्हें 6 साल की निवास अवधि के आधार पर नागरिकता मिल जाएगी। ऐसे में उनकी मांग है कि बाहरी मुस्लिमों को भी नए नियम कैब के तहत भारत की नागरिकता दी जाए। ताकि एनआरसी का असर न पड़े।