जब हनुमानजी को मृत्युदंड देने उद्यत हुए श्रीरामजी !
अयोध्या में रामराज्य होने के बाद एक बार सभा में शास्त्रार्थ हो गया कि भगवान बड़े हैं कि भगवान का नाम ?
श्रीराम बड़े हैं कि उनका नाम बड़ा ? कई साधु.संतों ऋषि.मुनियों और मंत्रियों ने कहा भगवन श्रीरामचन्द्रजी प्रत्यक्ष हैं । आँखों से उनके दर्शन कर रहे हैं, कानों से उनकी वाणी सुन रहे हैं, भगवान बड़े हैं । दूसरे ऋषियों ने कहा कि नहीं ये तो इन्द्रियों से दिखते हैं परंतु भगवान का नाम तो इन्द्रियों से सुनाई पड़ता है और मन.बुद्धि को पावन भी करता है और चित्त को चेतना भी देता है, तो भगवान का नाम बड़ा है ।
“लेकिन भगवान हैं तो भगवान का नाम है न” !
सब अपने-अपने ढंग से व्याख्या करें। दोनों पक्षों की बात सच्ची लगती। कोई निर्णय नहीं हो रहा था तो देवर्षि नारदजी ने बीड़ा उठाया। नारदजी गये हनुमानजी के पास बोले कल सभा में तुम आओगे तो रामजी महर्षि वसिष्ठजी आदि सबको प्रणाम करना पर विश्वामित्रजी को पीठ दिखा देना और पूँछ को झटककर कोड़े की तरह आवाज कर देना।
हनुमानजी चौंके, बोले : विश्वामित्रजी तो तेजस्वी हैं, गुस्सा हो जायेंगे तो ?
“मैं तुम्हारे साथ हूँ न” !
हनुमानजी ने वैसा ही किया। नारदजी विश्वामित्रजी के पास बैठे थे, बोले : देखो यह बंदर क्या करता है ! आपका घोर अपमान हो रहा है। पीठ तो दे रहा है साथ ही आपके सामने पूँछ को कोड़े की नाईं झटक दिया ! विश्वामित्रजी ने गर्जना की हे राम ! मैं इस बंदर को मृत्युदंड दिलाना चाहता हूँ ।
सारी सभा में सन्नाटा छा गया !
दिशाएँ सुन लो, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, देवता सुन लो, राम मिथ्याभाषी नहीं हैं और अवज्ञा नहीं करेंगे । जैसे रावण को स्वधाम भेज दिया ऐसे ही इस हनुमान को कल सरयू. किनारे अपने तीक्ष्ण बाणों से मृत्युदंड देंगे ।
रामजी की कैसी परीक्षा ! एक तरफ इतना समर्पित शिष्य प्राण हथेली पर लेकर सब काम करते थे हनुमानजी
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।
अब प्रिय सेवक को रामजी तीक्ष्ण बाणों से मारें यह भी कठिन है और गुरु विश्वामित्र को कहें कि यह काम नहीं होगा रामजी के लिए यह भी कठिन है। रामजी ने कहा जो आज्ञा ! दास राम गुरु की आज्ञा से अन्यथा नहीं कर सकता है ।
अब अयोध्या में हाहाकार मच गया। हनुमानजी को चिंता हुई कि प्रभु के बाण अगर व्यर्थ हो गये तो उनके लिए अच्छा नहीं और प्रभु के हाथ से मैं मर गया तो इतिहास में प्रभु को लोग क्या-क्या बोलेंगे।
देवर्षि नारदजी कहते हैं हनुमान ! तुम चिंता क्यों करते हो, मैंने तुमको काम सौंपा है, तो यह मेरा काम है।
अभी निश्चिंत हो के सो जाओ। अभी तो रात है। जो होगा सुबह होने के बाद होगा न !
हनुमानजी : “तो मैं क्या करूँ” ? तुलसी भरोसे राम के निश्चिंत होई सोय ।
अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय ।।
सुबह हुई। नारदजी बोले देखो हनुमान ! जो अनंत ब्रह्मांडों में रम रहा है उसी मूल तत्त्व से जुड़कर प्राण चलते हैं, हाथ उठता है वही तो राम हैं।
जीव राम घट-घट में बोले
ईश्वर राम दशरथ घर डोले ।
बिंदु’ राम का सकल पसारा
ब्रह्म राम है सबसे न्यारा ।।
जैसे घटाकाश, मठाकाश, मेघाकाश और महाकाश ये चार दिखते हैं लेकिन आकाश चारों में एक है। ऐसे ही वही सर्वव्यापक राम सत्यस्वरूप है | वही मेरा मूल है और श्रीरामजी का हाथ भी उसी मूल की सत्ता से उठता है। ऐसा चिंतन करके जब रामजी का तीर चले तो तुम बोल देना जय श्रीराम ! भाव उसी ब्रह्म राम पर रखना। फिर देखो क्या होता है !
रामचन्द्रजी ने बराबर बाण का संधान किया। हनुमानजी बोलें : जय श्रीराम…… तो गदा को छूने के पहले ही बाण सट करके नीचे गिर जाय। इस प्रकार रामजी के सारे बाण खत्म हो गये । अब एक बाण बचा। रामजी ने यह संकल्प करके संधान किया कि यह मेरा बाण सफल हो।
नारदजी समझ गये कि रामजी भी उसी राम तत्त्व में विश्रांति पाकर बाण के साथ संकल्प जोड़ रहे हैं, तो विश्वामित्रजी को कहा देखो हनुमानजी के प्राण अभी शेष हैं। रामजी इतनी तीव्रता से बाण मारते हैं और वह हनुमानजी की गदा को छूता तक नहीं। अगर रामजी और भी कुछ करके मार भी देंगे तो महाराज ! लोग बोलेंगे कि विश्वामित्र अपमान न सह सके रामजी के सेवक को मरवा दिया । आपके नाम पर कलंक आ जायेगा । अतः अब आप खड़े होकर कह सकते हैं कि ष्रामचन्द्रजी ! हम इस हनुमान को क्षमा करते हैं। तो लोगों के मन में आपके प्रति सद्भाव होगा, हनुमानजी का भी सद्भाव बढ़ेगा और रामजी का सिर आपके चरणों में अहोभाव से झुकेगा । धर्मसंकट से रामजी भी बच जायेंगे, हनुमानजी भी बच जायेंगे और आपका नाम कलंक से बच जायेगा। अब बाजी आपके हाथ में है।
विश्वामित्रजी : नारद ! तुम बड़े बुद्धिमान हो । बहुत-बहुत ठीक कहा है तुमने।
विश्वामित्रजी खड़े हो गये बोले : हे श्रीराम ! रुक जाओ। हम हनुमान को क्षमा करके प्राणदान देते हैं।
साधो…..साधो ! जय श्रीराम ! जय विश्वामित्र ! जय हो, जय हो, जय हो ! जयघोषों से सारा वातावरण गूँजने लगा।
नारदजी खड़े हो गये बोले : सुनो…. सुनो ! साधु स्वभाववाले सज्जनो ! सत्य के चाहक लोगो !
भगवान बड़े कि भगवान का नाम बड़ा ? इसका निर्णय आज सरयू.तट पर प्रत्यक्ष हो गया। भगवान ने संधान करके इतने-इतने बाण मारे लेकिन भगवान के नाम ने उन बाणों को निरस्त कर दिया। अब इस पर कौन क्या शास्त्रार्थ करेगा ।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई ।
भगवान राम भी भगवन्नाम के गुणों को नहीं गा सकते ।
तो भगवान का नाम और फिर जब वह ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु के द्वारा मिल जाता है और उसका अर्थ समझ के अगर कोई जपता है तो महाराज ! उसके जन्म.जन्मांतर के कुसंस्कारए पाप-ताप मिट जाते हैं । भगवन्नाम गुरुमंत्र जपने से 84 नाड़ियों 26 उपत्यकाओं, 5 शरीरों और 7 मुख्य केन्द्रों में सात्त्विक भगवद्.आंदोलन पैदा होते हैं। भगवन्नाम अकाल मृत्यु को टालता है ।बुद्धि में सत्त्व का संचार करता है और जब सद्गुरु ने भगवन्नाम दिया है, तो वह नाम गुरुमंत्र अर्थात् बड़ा मंत्र हो जाता है ।