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धर्म - ज्योतिष

ब्राह्मण के गुण क्या होते हैं ? प्रत्येक ब्राह्मण का क्या कर्तव्य है…

आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि हिंदू धर्म में ब्राह्मण देवता तो किसी देवी-देवता के कम नहीं माना जाता। कहने का भाव हैं इन्हें भी देवी-देवताओं की ही तरह पूजनीय माना जाता है। मगर इन्हीं लोगों में से बहुत से लोगों के मन में ये सवाल भी आया होगा कि आख़िर क्यों ब्राह्मण को देवता का रूप माना जाता है? इसके पीछे का कारण क्या है? दरअसल इस बात का विवरण धार्मिक ग्रंथों में बाखूबी किया गया है। जी हां शास्त्रों से जानते हैं कि क्यों ब्राह्मण को देवता समान पूजनीय माना जाता है।

शास्त्रीय मत-
पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।
सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।
चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः  ।
सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया  ।।
अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।
नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।

अर्थात- उपरोक्त श्लोक के अनुसार पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में है। चार वेद उसके मुख में हैं। अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है ब्राह्मण की पूजा करने से सब देवों की पूजा होती है। पृथ्वी में ब्राह्मण विष्णु स्वरूप माने गए हैं इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो उसे कभी ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष नहीं करना चाहिए।

ब्राह्मण के नौ गुण क्या होते हैं ?

रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलो जितेन्द्रियः।
दाता शूरो दयालुश्च ब्राह्मणो नवभिर्गुणैः।।
रिजुः = सरल हो
तपस्वी = तप करनेवाला हो
संतोषी= मेहनत की कमाई पर सन्तुष्ट रहनेवाला हो
क्षमाशीलो = क्षमा करनेवाला हो
जितेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में रखनेवाला हो
दाता= दान करनेवाला हो
शूर = बहादुर हो
दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हो
ब्रह्मज्ञानी
इन नौ गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही ब्राह्मण होता है।

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भगवान श्री राम जी ने श्री परशुराम जी से कहा भी है→
“देव एक गुन धनुष हमारे, नौ गुन परम पुनीत तुम्हारे।।”

दैवाधीनं जगत सर्वं , मन्त्रा धीनाश्च देवता:।
ते मंत्रा: ब्राह्मणा धीना: , तस्माद् ब्राह्मण देवता:।।

धिग्बलं क्षत्रिय बलं , ब्रह्म तेजो बलम बलम् ।
एकेन ब्रह्म दण्डेन , सर्व शस्त्राणि हतानि च ।।
इस श्लोक में भी गुण से हारे हैं त्याग तपस्या गायत्री सन्ध्या के बल से और आज लोग उसी को त्यागते जा रहे हैं, और पूजवाने का भाव जबरदस्ती रखे हुए हैं ,

*विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या।
वेदा: शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् l।
*तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं।
छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ll

भावार्थ — वेदों का ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण एक ऐसे वृक्ष के समान हैं जिसका मूल (जड़) दिन के तीन विभागों प्रातः, मध्याह्न और सायं सन्ध्याकाल के समय यह तीन सन्ध्या (गायत्री मन्त्र का जप) करना है, चारों वेद उसकी शाखायें हैं, तथा वैदिक धर्म के आचार विचार का पालन करना उसके पत्तों के समान हैं ।
अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह कर्तव्य है कि,, इस सन्ध्या रूपी मूल की यत्नपूर्वक रक्षा करें, क्योंकि यदि मूल ही नष्ट हो जायेगा तो न तो शाखायें बचेंगी और न पत्ते ही बचेंगे ।