अपनी मामी की मौत के बाद मधुसूदनपुर की अर्चना झा को बच्चों से ऐसा लगाव हुआ कि वह चाइल्ड लाइन से जुड़कर छह वर्षों में पांच सौ से अधिक बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवा चुकी हैं।
नवजात बच्चों के इलाज का मामला हो या घर से भागे या खोए हुए बच्चे को ढूंढने की वह 24 घंटे तैयार रहती हैं। एक फोन पर संबंधित जगह पर पहुंच जाती हैं। इस काम के दौरान शुरू में कई बार उनको भय भी लगता था लेकिन बच्चों के प्रति प्रेम के कारण आज भी अपने काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं। कई बार वह नवजात बच्चे को बचाने के लिए कई रात तक नहीं सोयी।
अर्चना ने बताया कि दो साल पहले दुर्गापूजा के समय बांका से फोन आया था कि पॉलिथीन में कोई अपना बच्चा फेंक दिया है। स्थानीय एक महिला ने बच्चा को अस्पताल पहुंचाया। बांका में प्राथमिक उपचार के बाद उसे मायागंज अस्पताल में भर्ती कराया जहां डेढ़ माह के इलाज के बाद वह ठीक हुआ। इस दौरान लगातार अस्पताल में एक मां की तरह उसकी देखभाल की। अब वह स्वस्थ है।
बचपन से है बच्चों से लगाव
अर्चना बताती हैं कि मामी की मौत के बाद उनके बच्चों को स्कूल पहुंचाने, खाना खिलाने और पढ़ाने के दौरान यह लगाव अचानक बढ़ गया। बांका, सन्हौला, कहलगांव, गोराडीह आदि कई जगहों से वह नवजात बच्चों को ला चुकी हैं। घर से भागे कई बच्चों को वह स्टेशन से लेकर खुद अभिभावकों के पास पहुंचाती हैं।
लड़कियों की मदद के लिए रहती हैं आगे
आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों की मदद के लिए अर्चना हमेशा आगे रहती हैं। वह लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए समय निकालकर सिलाई सीखाती हैं। अभी तक एक सौ से अधिक लड़कियों को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। अर्चना बताती हैं कि हर लड़कियां को अपने पति पर आश्रित नहीं होना चाहिए। जब वह खुद आत्मनिर्भर होंगी तो समाज के अन्य जरूरतमंदों की मदद कर सकती हैं।