अनादि न्यूज़

सबसे आगे सबसे तेज

समाचार

दुश्मन का वार रोकने वाली आकाश जैसी मिसाइल से सरकारी रक्षा कंपनियां क्यों कर रही हैं खिलवाड़?

खास बातें

  • सेना और वायुसेना दोनों को है शिकायत
  • मिसाइल का मॉइस्चराइज होना चिंता जनक
  • बीडीएल के आपूर्ति की रफ्तार है धीमी
  • बीईएल नहीं कर पा रही है वायुसेना के मानकों को पूरा

देश की सेना और वायुसेना को पाकिस्तान और चीन की चुनौतियों को देखते हुए आकाश प्रतिरक्षी मिसाइल चाहिए, लेकिन भारतीय सेना और वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि डीआरडीओ की ओर से विकसित की गई इस मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति में भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) जैसी सरकारी रक्षा कंपनियां गुणवत्तापूर्ण तरीके से जरूरत पूरी नहीं कर पा रही हैं। बताते हैं सेना और वायुसेना के लिए आकाश मिसाइल प्रणाली की समय परआपूर्ति और तैनाती एक चुनौती बनी हुई है।

वायुसेना को भी मिली सात स्क्वाड्रन की इजाजतआकाश प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली देश की सामरिक और रणनीतिक मिसाइल के क्लब में शामिल है। यह दुश्मन की मिसाइल, लड़ाकू विमान समेत अन्य को 30 किमी दूर ही हवा में ध्वस्त करने की क्षमता रखती है। आकाश प्रणाली की इस खासियत और पाकिस्तान, चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए ही हाल में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने वायुसेना को भी अपने बेड़े में सात स्क्वाड्रन आकाश मिसाइल प्रणाली तैनात करने की चुनौती दे दी है। वायुसेना ने आकाश मिसाइल प्रणाली के कार्यक्रम को भी तैयार कर लिया है, लेकिन प्रणाली की आपूर्ति को लेकर उसकी चिंताए अभी कम नहीं हुई है। वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि वायुसेना के बेड़े में मिसाइल प्रणाली को शामिल करने के लिए डेवलपमेंट से जुड़ी शुरुआती दिक्कतें दूर कर ली गई हैं। इस मिसाइल का निर्माण रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाली भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) करती है। वहीं भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड आकाश मिसाइल के लिए रेडार प्रणाली समेत अन्य ट्रैकिंग और नेटवर्किंग सिस्टम तैयार करती है। सूत्र बताते हैं कि बीडीएल में 500 से अधिक आकाश मिसाइल बनकर तैयार है, लेकिन किन्हीं कारणों से इसकी आपूर्ति का काम रुका हुआ है।

See also  मूर्तियों के बाजार से इस बार 'मेड इन चाइना' गायब, 'मेक इन इंडिया' का जादू चला...

प्रेशराइज्ड गैस कंटेनर में चाहिए आकाश मिसाइल

डीआरडीओ प्रमुख सतीश रेड्डी कुछ साल पहले रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर के वैज्ञानिक सलाहकार थे। बताते हैं सतीश रेड्डी के सुझाव और प्रयास के बाद भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) ने सेना को प्रेशराइज्ड गैस कंटेनर में आकाश मिसाइल की आपूर्ति शुरू की। अब सेना चाहती है कि उसे इसी तरह के प्रेशराइज्ड गैस कंटेनर में आकाश मिसाइल की आपूर्ति की जाए। शुरुआत में भारत डायनामिक्स लिमिटेड इन मिसाइलों की आपूर्ति पारंपरिक कंटेनरों में कर रही थी। सैन्य सूत्रों का कहना है कि प्रेशराइज्ड गैस कंटेनर में मिसाइल को रखे जाने के बाद जहां मिसाइल को सुरक्षित वातावरण मिल जाता है, वहीं उसकी लाइफ साइकिल भी बढ़ जाती है।

मिसाइल को मौसम या वातावरण के चलते होने वाली नमी और इससे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि भारतीय सेना की मांग पर बीडीएल ने प्रेसराइज्ड गैस कंटेनर में आकाश मिसाइल की आपूर्ति शुरू की है, लेकिन इसकी रफ्तार बहुत धीमी है। सेना की ही तरह वायुसेना को भी प्रेसराइज्ड गैस कंटेनर में मिसाइल चाहिए। वायुसेना सूत्रों का कहना है कि प्रेसराइज्ड गैस कंटेनर में मिसाइल को रखे जाने के बाद उसके म्वाइस्चराइज होकर नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर रहता है।

ट्रांसपोर्टेशन एंड लोडिंग वेहिकिल (टीएलवी)

वायुसेना आकाश ट्रांसपोर्टेशन एंड लोडिंग वेहिकिल (टीएलवी) को लेकर भी काफी संवेदनशील है। बताते हैं पिछले साल टीएलवी एक एयरफोर्स स्क्वाड्रन पर थी और अचानक उसकी ट्यूब फटने से बड़ा झटका लगा। इसी तरह की चिंता सेना की भी है। सेना भी चाहती है टीएलवी से लेकर पूरी प्रणाली की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाए। आकाश मिसाइल और इसके रख-रखाव को इस तरह से डिजाइन किया जाए कि उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में समस्या कम से कम आए।

इस तरह के तमाम मुद्दों पर सेना, वायुसेना दोनों डीआरडीएल (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी) के साथ संवाद, रूटीन चेकअप चाहते हैं। इतना ही आकाश मिसाइल प्रणाली के लिए निजी कंपनियों की तरफ से आपूर्ति किए जाने उपकरणों, कल-पुर्जों, सामानों की गुणवत्ता को लेकर भी सैन्य बलों की शिकायत है।

See also  CAA : क्या एक ही पटरी पर हैं चिदंबरम और अमित शाह?

नहीं मिला सवाल का जवाब

आकाश मिसाइल प्रणाली को लेकर रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय और वायुसेना के जानकारी लेने का प्रयास हुआ, लेकिन कोई सफलता नहीं सकी। हालांकि वायुसेना मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आकाश मिसाइल प्रणाली पूरी तरह से स्वदेशी है। ऐसे में सतह से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल प्रणाली के शुरुआती डेवलपमेंट में कुछ दिक्कतें आनी स्वाभाविक हैं। सूत्र का कहना है कि काफी कुछ चिंताओं को दूर कर लिया गया है। उम्मीद है कि जल्द ही चिंताओं को दूर करके इसे वायुसेना के बेड़े में शामिल कर लिया जाएगा।

क्यों जरूरी ये है मिसाइल?

आकाश मिसाइल प्रणाली दुश्मन पर वार करने वाली मिसाइल नहीं है। यह उससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण और सतह से हवा में 30 किमी दूरी से ही दुश्मन के वार को पहचान कर उसे स्वत: हवा में ही ध्वस्त करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली है। अभी भारत के पास दुश्मन का वार रोकने, उसे हवा में ध्वस्त करने वाली यह इकलौती मिसाइल प्रणाली है। इसलिए इस मिसाइल प्रणाली को पाकिस्तान और चीन से लगते सीमा क्षेत्र में तैनाती की रणनीति बनाई गई है। माना जा रहा है कि रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम आने के बाद आकाश और एस-400 के तालमेल से भारतीय सैन्य बलों की सुरक्षा पंक्ति बहुत मजबूत हो जाएगी।