अनादि न्यूज़ डॉट कॉम। प्राचीनकाल में स्नान से पूर्व शरीर पर तेल की मालिश करने का नियम था। इससे शरीर को रोगमुक्त और ऊर्जावान बनाए रखने में सहायता मिलती थी। आजकल जिन घरों में पुराने समय की दादी-नानियां हैं वहां आज भी इस परंपरा का पालन किया जाता है किंतु आधुनिक घरों में यह परंपरा अब लुप्त हो गई है। इनके स्थान पर हाई क्लास मसाज सेंटर खुल गए हैं, जहां लोग अपने आप को स्फूर्तिवान बनाए रखने के लिए मालिश करवाने पहुंचते हैं। यह हाई क्लास सोसायटी में शामिल हो गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं प्राचीनकाल में शास्त्रों में तेल मालिश को शारीरिक स्वस्थता के साथ धर्म, संस्कृति, यश-अपयश आदि से भी जोड़ा गया है।
प्राचीनकाल में शरीर पर तैल लगाने के लिए दिन, तिथियां, वार आदि सभी निर्धारित किए गए थे। कई घरों में अभी भी इनका पालन किया जाता है। इसे तैलाभ्यंग कहा जाता है। आइए जानते हैं क्या हैं वे नियम निर्णयसिंधु का कथन है किषष्ठी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, व्रत एवं श्राद्ध के दिन तैलाभ्यंग नहीं करना चाहिए। रविवार, मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार को शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। किंतु सुगंधित पुष्पों से वासित, आयुर्वेद की पद्धति से सिद्ध षड्विंदु और महाभृंगराज आदि सुगंधित तेल को वर्जित काल में भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकार सरसों के तेल का भी निषेध नहीं है।
मुख्य रूप से तिल के तेल का ही निषेध शास्त्रों में बताया गया है। किस दिन का क्या प्रभाव निर्णयसिंधु का कथन है किरविवार को तेल लगाने से ताप अर्थात् बुखार आता है। सोमवार को शोभा बढ़ती है। मंगलवार को मृत्यु के समान कष्ट होता है, बुधवार को तेल लगाने से धन प्राप्ति होती है, गुरुवार को हानि होती है, शुक्रवार को दुख और शनिवार को शरीर पर तेल लगाने से सुखों की प्राप्ति होती है। यदि निषिद्ध वारों में तेल लगाना हो तो रविवार को पुष्प, मंगलवार को मिट्टी, गुरुवार को दूर्वा और शुक्रवार को तेल में गोबर डालकर लगाने से दोष नहीं लगता। गंधयुक्त पुष्पों से सुवासित, अन्य पदार्थो से युक्त तथा सरसों का तेल दूषित नहीं होता है।