भनपुरी के एक संगठन ने नवरात्रि में सबसे बड़े भंडारे का आयोजन किया है। 16 हजार लोगों के लिए हुए इस भंडारे में खाने-पीने के लिए सिर्फ मिट्टी के बर्तनों का ही इस्तेमाल किया गया। पानी के जग और गिलास से लेकर थाली और कटोरियां सभी कोलकाता से मंगाई गईं। भंडारे के मुख्य आयोजक शांता जाल परिवार का कहना है कि पिछले 10 साल से प्लास्टिक खाने की वजह से गायों की मृत्यु को देख रहे हैं। इसलिए तय किया था कि प्लास्टिक के बजाय मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करेंगे।
यहां के मंदिर में 2012 से हर साल भंडारा होता है। शुरुआत से ही सिर्फ मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जाल परिवार का कहना है कि मिट्टी का बर्तन टूट जाए तो उसे गड्ढे में डाल देते हैं। यह चार-छह दिन में मिट्टी बन जाता है। कोलकाता से फिर वैसा ही बर्तन मंगवा लेते हैं।
पर्यावरण पर भी काफी काम
भंडारे के साथ शांता जाल पर्यावरण जागरुकता फैलाने और अरसे से गोसेवा में लगे हैं। मवेशियों के लिए भी काफी काम कर चुके हैं। भास्कर को दिखाए दस्तावेजों के मुताबिक, वह कई बार सरकार से प्लास्टिक बैन की मांग कर चुके हैं।
इसलिए मिट्टी के बर्तन
आयुर्वेद के अनुसार शरीर को रोज 18 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व मिलने चाहिए। जो सिर्फ मिट्टी से ही आते हैं। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 फीसदी पोषक तत्व नष्ट होते हैं। मिट्टी के बर्तन में पूरे 100 फीसदी पोषक तत्व मिलते हैं। इनमें खाना खाने से अलग से स्वाद भी आता है।