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‘जितना मर्जी चाहे, रूस से उतना तेल खरीद सकता है भारत’, मोदी सरकार के तेवर के सामने झुका US!

US-INDIA TIE RUSSIAN OIL: यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही रूसी तेल खरीदने को लेकर लगातार भारत अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के निशाने पर रहा है और भारत को गंभीर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद भारत सरकार ने रूसी तेल खरीदने को लेकर कदम पैर नहीं खींचे, बल्कि भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और भारतीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हर मीडिया और डिप्लोमेटिक प्लेटफॉर्म पर रूसी तेल आयात को लेकर भारत का मजबूती से पक्ष रखा है। लेकिन, अब अमेरिका की तरफ से बहुत बड़ा बयान दिया है और कहा गया है, कि भारत अपनी मर्जी के मुताबिक, जितना चाहे उतना रूसी तेल खरीद सकता है और माना जा रहा है, कि भारत की नई तरह की विदेश नीति के सामने पहली बार अमेरिका अपने कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर हुआ है।

रूसी तेल पर यूएस झुका?

संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि, वो खुश है कि भारत जितना मर्जी चाहे, उतना रूसी तेल खरीदना जारी रखे, जिसमें रूसी तेल के ऊपर जी7 देशों की तरफ से लगाए गये प्राइस कैप से ऊपर की कीमत भी शामिल होगा। अमेरिका ने कहा है, कि अगर प्राइस कैप से ऊपर की कीमत देकर भी भारत रूस से तेल खरीदता है और उससे पश्चिमी देशों की इंश्योरेंस कंपनियां, फाइनेंस संस्थान और मैरिटाइम सर्विस का उल्लंघन नहीं होता है, तो अमेरिका को कोई फर्क नहीं पड़ता है। यू.एस. ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की है। जेनेट येलेन ने कहा है कि, रूस के खिलाफ जी7 देशों की तरफ से जो प्राइस कैप लगाए गये हैं, वो अभी भी रूस के राजस्व पर अंकुश लगाने का काम करेगा और वैश्विक तेल की कीमतों को कम करेगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए जेनेट येलेन ने भारतीय-अमेरिका आर्थिक संबंधों को गहरा करने को लेकर आयोजित एक सम्मेलन के दौरान ये बातें कहीं, जिसमें उन्होंने भारत को अमेरिका का काफी अहम साझेदार बताया है।

‘रूस के लिए मुश्किल होगा तेल बेचना’

जेनेट येलेन ने रॉयटर्स से बात करते हुए कहा कि, हालांकि, अब रूस के लिए उतना तेल बेचना आसान नहीं होगा, जितना तेल वो अभी निर्यात करता है, क्योंकि प्राइस कैप लगने और यूरोपीय संघ के द्वारा रूसी तेल खरीदने पर रोक लगाने के बाद रूस के लिए महत्वपूर्ण छूट देकर तेल बेचना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि, जब यूरोपीय संघ तेल खरीदना बंद कर देगा, तो फिर रूस के लिए उतना ही तेल का शिपिंग करना काफी ज्यादा मुश्किल होगा, जितना वो अभी कर रहा है। लिहाजा, रूस काफी बेचैनी के साथ तेल के नये खरीदारों की तलाश करेगा, लेकिन ज्यादातर खरीदार पश्चिमी सेवाओं पर निर्भर हैं। भारत अब चीन के अलावा रूस का सबसे बड़ा तेल ग्राहक है। आपको बता दें कि, जी7 देश रूसी तेल के ऊपर 5 दिसंबर के डेडलाइन से पहले प्राइस कैप लगा देंगे।

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‘भारत को मिल रहे फायदे से खुशी’

यू.एस. ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने कहा कि, प्राइस कैप के आ जाने के बाद भारत और चीन को रूसी कच्चे तेल की खरीददारी के लिए कीमत कम करवाने में और मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि, “रूसी तेल सस्ते दामों पर बिक रहा है, और हम खुश हैं कि भारत को कम कीमत पर ये सौद मिल गया है, जो ठीक है।” येलेन ने रॉयटर्स को बताया कि, भारत और निजी भारतीय तेल कंपनियां “किसी भी कीमत पर तेल खरीद सकती हैं, जब तक वे इन पश्चिमी सेवाओं (इंश्योरेंस और शिपिंग) का उपयोग नहीं करते हैं, और वे अन्य सेवाएं ढूंढते हैं। और कोई भी तरीका ठीक है।” उन्होंने कहा कि, प्राइस कैप का मकसद रूस के तेल राजस्व में कटौती करना है और उन्हें पश्चिमी देशों के इंश्योरेंस, शिपिंग कंपनियों का फायदा लेने से रोकना है। उन्होंने संभावना जताई है, कि प्राइस कैप लगने के बाद रूसी तेल की कीमत 63 से 64 डॉलर प्रति बैरल के एतिहासिक स्तर तक आ सकता है।

सावधान है भारत

यू.एस. ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन की ये टिप्पणी उस वक्त आई है, जब पिछले हफ्ते भारतीय विदेश मंत्री और भारतीय पेट्रोलियम मंत्री ने साफ शब्दों में कहा है, कि भारत रूस से कच्चे तेल का आयात करना जारी रखेगा, क्योंकि इससे भारत को फायदा होता है। हालांकि, उनकी टिप्पणी को लेकर भारत की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक जबाव नहीं आया है, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य भारतीय अधिकारियों ने कहा है, कि वो जी7 देशों के प्राइस कैप को लेकर सावधान हैं। भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि, “मुझे नहीं लगता कि हम प्राइस कैप मैकेनिज्म का पालन करेंगे और हमने इसके बारे में देशों को बता दिया है और हमारा मानना है, कि हमारे फैसले से वो देश सहज हैं। अधिकारी ने कहा कि, स्थिर आपूर्ति और कीमतें सबसे महत्वपूर्ण हैं।

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टैंकरों के जरिए होगी तेल आपूर्ति?

जी7 देशों के प्राइस कैप एक्टिव होने के बाद किसी भी देश के लिए रूसी तेल खरीदना आसान नहीं होगा, क्योंकि इसके बाद उन्हें रूसी तेल को गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए ना तो इंश्योरेंस मिल सकेगा और ना ही पश्चिमी देशों के वो जहाज ही मिल सकेंगे, जिनसे तेल की शिपिंग की जाती है। जिसे देखते हुए रूस की तरह से टैंकर विकल्प पर काम किया जा रहा है। रूस का सबसे बड़ा तेल निर्यातक रोसनेफ्ट अपने टैंकर चार्टर ट्रेड का विस्तार कर रहा है, ताकि उसके खरीदारों को प्राइस कैप के रूप में टैंकर, इंश्योरेंस या अन्य सेवाओं की तलाश न करनी पड़े। हालांकि, टैंकरों से तेल की आपू्र्ति आसान नहीं होगी और उदाहरण के तौर पर अगर भारत रूस से तेल की आपू्र्ति सड़क मार्ग टैंकर से टैंकरों के जरिए करता है, तो उस तेल की लागत इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी, कि बाजार में उसे बेचना काफी मुश्किल होगा, लिहाजा अब देखना दिलचस्प होगा, कि भारत और चीन जैसे देश किस तरह से रूसी तेल की आयात करते हैं।