आलू हम सभी के घर हर वक्त मौजूद रहने वाली सब्जी है. आलू से हम न जाने कितने ही नमकीन, मीठी, तीखे और खट्टे व्यंजन बना सकते हैं. शायद ही कोई ऐसा हो जिसने कभी आलू न खाया हो.
वैसे ये आलू बस खाने के ही काम नहीं आता. ये बड़े काम की चीज है. यही खाने वाला आलू आपकी चोट भी ठीक कर सकता है. अगर आपका हाथ किसी धारदार चीज़ से कट गया है तो आप तुरंत उस पर आलू को काटकर रगड़ लें. इससे खून बहना तुरंत बंद हो जाता है. यही नहीं अगर आपके काम की पुरानी सीडी या डीवीडी स्क्रैचेज़ की वजह से ठीक से काम नहीं कर रही है तो उस पर आप आलू रगड़ दें. वह दोबारा पहले की तरह काम करने लगती है.
हां, हां इंटरनेट पर आपने आलू से मोबाइल चार्ज करने वाले वीडियो भी जरूर देखे होंगे, लेकिन उनके चक्कर में अपना मोबाइल मत खराब कीजिएगा. बहरहाल ये तो रही आलू के इस्तेमाल की बात लेकिन क्या आपको मालूम है कि सारी सब्जियों के साथ फिट हो जाने वाला आलू आपके सब्जी के थैले में आया कहां से?
आज हर घर में मौजूद रहने वाले आलू को पुर्तगाली भारत लेकर आए 1498 में. कहा जाता है कि पुर्तगाली भारत से मसालों के बदले में आलू दे गए. उस समय भारत में आया आलू यहीं का होकर रह गया और धीरे-धीरे सब्जियों का राजा बन गया.
पुर्तगाली 1498 में आलू को भारत लेकर आए. उसके बाद से आलू यहीं का होकर रह गया.
लूटने गए थे सोना-चांदी मिल गए आलू
आलू की पैदाइश दक्षिण अमेरिका के पेरू की बताई जाती है. इतिहासकारों का मानना है कि पेरू में 8000 साल से आलू की खेती हो रही है.
पेरू में 1438 से 1532 तक राज करने वाले इंका साम्राज्य का आलू की खेती में बड़ा योगदान माना जाता है. बताया जाता है कि इंका सभ्यता के लोग कुशल कृषक थे और इन्होंने ही सीढ़ीदार खेतों पर खेती करने की शुरुआत की थी.
1532 में स्पेन ने सोना-चांदी लूटने के मकसद से पेरू पर हमला किया. वहां उन्हें सोना-चांदी तो मिला ही साथ ही उनका परिचय आलू से भी हुआ. वहां से शुरू हुआ आलू का सफर पूरी दुनिया में फैल कर ही खत्म हुआ.
200 तक किसी ने पूछा सब्जियों के राजा को
आलू जब यूरोप पहुंचा तो लंबे समय तक वहां के लोगों ने उसे खाया ही नहीं क्योंकि यूरोप के लोग बेस्वाद और दिखने में बुरी लगने वाली चीजें खाते ही नहीं थे.
लातीनी देशों में प्राचीन समय में आलू और आलू की देवी कही जाने वाली अक्सोमामा को पूजने की प्रथा थी, ताकि आलू की बेहतर फसल उन्हें मिल सके
अब आलू पूरे यूरोप में फैल ही गया था तो ऐसे में आलू जिस बैलेडैना नाम के पौधे के नीचे लगता उसका इस्तेमाल वह सजावट के लिए कर लेते. पूरे यूरोप को आलू को अपनाने में 200 साल लग गए. तब तक ये निचले वर्ग के लोगों के लिए भोजन का मुख्य हिस्सा बन चुका था.
आलू के कारण बढ़ी और कम हुई जनसंख्या
यूरोप के ही एक और देश आयरलैंड में आलू के इस्तेमाल के बाद से कुछ अलग ही परिणाम देखने को मिला. बताया जाता है कि सन् 1590 से लेकर 1845 के बीच आयरलैंड की जनसंख्या बेहद तेज़ी से बढ़ती हुई 10 लाख से 80 लाख तक पहुंच गई.
इसके बाद जो हुआ वह इतिहास में दर्ज अपने जैसा एक अनोखा मामला है. दरअसल आयरलैंड में 1845 से 1849 तक आलू की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई. उस वक्त वहां की करीब 40 प्रतिशत जनसंख्या के भोजन का मुख्य हिस्सा आलू ही था.
परिणाम ये हुआ कि लाखों लोग भूख से मरने लगे और करीब 20 लाख लोग अपने घर छोड़कर दुनिया के दूसरे हिस्सों में चले गए. इससे अचानक वहां की जनसंख्या में 20-25 प्रतिशत की कमी आ गई. लेकिन यहीं आलू का अंत नहीं हुआ. 1849 के बाद धीरे-धीरे आलू की फसल स्वस्थ होती गई और एक बार फिर यूरोप की जनसंख्या बढ़ने लगी.
अंग्रेज गए तो अंग्रेजी छोड़ गए, पुर्तगाली गए तो आलू
जिसे आप आलू के नाम से जानते हैं उसे पुर्तगाली बटाटा कहते हैं. भारत के समुद्री छोरों खासकर कि गोवा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में आज भी आलू को बटाटा ही कहा जाता है.
भारत में आलू आ तो पहले ही चुका था लेकिन सन् 1850 में जब अंग्रेजी साम्राज्य भारत में अपनी जड़ें पूरी तरह से जमा चुका था. तब उन्होंने ही भारतीयों को आलू बनाना सिखाया. धीरे-धीरे भारत में आलू की खेती शुरू हुई.
भारत में आलू की खेती 1850 में शुरू हुई. अब तो भारत दुनिया के बड़े आलू उत्पादकों में है
आलू भारत के लिए कितना ज़रूरी होता गया इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने सन् 1935 में शिमला, कुफरी हिमाचल और कुमायूं हिल्स में पोटैटो ब्रीडिंग सेंटर की शुरुआत कर दी. बाद में भारत सरकार ने इसका नाम सेन्ट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टिट्यूट कर दिया और इन तीनों रिसर्च सेंटर को मिलाकर 1956 में शिमला को हेडक्वाटर बनाया. इसी बीच सन् 1949 में पटना में इस संस्थान की एक और शाखा खुल चुकी थी.
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बता दें चावल और गेंहू के बाद आलू ही स्टेपल फूड के रूप में भारत की तीसरी मुख्य फसल है. दुनिया भर में चीन और रूस के बाद भारत सबसे ज़्यादा आलू उगाता है. तमिलनाडु और केरल को छोड़कर हमारे देश के हर राज्य में आलू का उत्पादन होता है. भारत में पटैटो रिसर्च सेंटर शिमला ने 48 उन्नत किस्मों का विकास किया है, जिसे भारत भर के किसान आलू की खेती में इस्तेमाल करते हैं. पूरी दुनिया में आलू की तकरीबन 5000 किस्में लोग इस्तेमाल कर रहें हैं. वहीं अभी तक जंगली आलू की 200 से अधिक प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं.