अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर एक याचिका दायर की थी। जिस पर सोमवार को सुनवाई हुई। इस मामले में केंद्र ने कहा कि वो मामले को गंभीरता से देख रहे। इसमें सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
धर्म परिवर्तन से जुड़े मामले में सुनवाई
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया। केंद्र ने साफतौर पर कहा कि वो धर्म परिवर्तन को गंभीरता से ले रहे हैं। देश में धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता तो है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन की नहीं। ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है, ऐसे में वो इस पर पूरा ध्यान दे रहे। केंद्र के मुताबिक 9 राज्यों ने इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए कानून पास किया है। ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा ऐसे राज्य हैं जिनके पास पहले से ही धर्मांतरण पर कानून है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में धर्म परिवर्तन को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें दावा किया गया कि धोखाधड़ी और धोखे से पूरे देश में धर्मांतरण हो रहा। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से इस पर जवाब मांगा था। इस पर केंद्र ने कहा कि संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र तो है, लेकिन धोखाधड़ी, धोखे, जबरदस्ती, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से धर्म परिवर्तन का अधिकारी उसमें शामिल नहीं है।
हलफनामे में कहा गया कि कई राज्यों में धर्म परिवर्तन से जुड़े कानून आए हैं, इस तरह के अधिनियम महिलाओं, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों के पोषित अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वहीं जस्टिस एमआर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने भी इसको गंभीर मुद्दा माना है। अब मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी। इससे पहले की सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन नागरिकों की अंतरात्मा की स्वतंत्रता के साथ-साथ देश की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
याचिकाकर्ता ने क्या-क्या कहा?
इस याचिका को अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर किया है। उन्होंने कहा कि देशभर में और धोखे से धर्मांतरण हो रहा है। हैरानी की बात ये है कि केंद्र सरकार इसके खतरे को नियंत्रित करने में विफल रही है। याचिका में मांग की गई कि कोर्ट सरकार को ये निर्देश दे कि वो धोखाधड़ी से हो रहे धर्म परिवर्तन पर कानून लेकर आए। हालांकि इससे पहले, शीर्ष अदालत ने उपाध्याय द्वारा दायर इसी तरह की एक याचिका को खारिज कर दिया था।