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छत्तीसगढ़ : रोज साइकिल से पहुंचते थे ‘प्रयास’ ताकि देख सकें, कैसी हो रही है बच्चों की परवरिश…

राजेंद्र प्रसाद (आरपी) मंडल छत्तीसगढ़ के नए प्रशासनिक मुखिया बनाए गए हैं। वैसे तो मंडल को रिजल्ट देने वाले अफसर के रूप में जाना जाता है। चाहे देश का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण हो, रायपुर समेत प्रदेश के अन्य शहरों में बनाई गई बाइपास रोड हो हर प्रोजेक्ट उन्होंने अलग अंदाज में पूरा कराया। लेकिन प्रशासनिक कामों के अलावा कुछ ऐसे भी काम हैं जिनके लिए आज भी लोग मंडल की चर्चा करते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं मंडल से जुड़े ऐसे ही कुछ रोचक किस्से…

लैपटॉप वितरण के दौरान बाद में बच्चों को पता चला यही हैं सचिव मंडल

पूर्व के कार्यकाल में सीएम हाउस में प्रयास विद्यालय के बच्चों को लैपटाप वितरण किया जा रहा था। तब वहां के बच्चों ने जाना कि जिस विभाग द्वारा लैपटाप बांटा जा रहा है वह उसी विभाग के बड़े अधिकारी हैं। तब बच्चों ने तत्कालीन सीएम को बताया था कि सर रोज हमारे विद्यालय में साइकिल से आते थे और वहां की व्यवस्था के साथ-साथ हमारी पढ़ाई की पूरी जानकारी लेते थे।

एमटेक करने के बाद बने आईएएस 
1987 बैच के आईएएस आरपी मंडल मूलत: बिहार के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता बिलासपुर के रेल डिवीजन अस्पताल में डॉक्टर थे। उनकी पढ़ाई बिलासपुर के दयालबंद के मल्टीपर्पस हाईस्कूल में हुई है। उन्होंने इंजीनियरिंग रायपुर में की और आईआईटी खड़गपुर से एमटेक किया है। और 87 में यूपीएससी पास आउट हैं।

तमिलनाडु यात्रा में फूल बेचने वाले को दे दिए थे सारे पैसे
एक बार मल्लकम तमिलनाडु में यात्रा के दौरान उन्होंने अपने साथी से पेमेंट करने कहा तो उन्हें आशंका हुई कि कहीं उनकी पॉकेटमारी तो नहीं हो गई। तब मंडल ने उन्हें बताया कि हनुमान मंदिर में दर्शन के बाद उनकी नजर फूल बेच रही एक बुजुर्ग पर पड़ी। उन्हें पता चला कि वह फूल बेचकर परिवार पालती है। यह सुनकर उन्होंने अपनी जेब के सारे रुपए उसे दे दिए थे। श्रम विभाग की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने रैग पिअर्स (कचरा बीनने वाले) के लिए योजनाएं भी बनाईं। इसलिए कभी सामने में कोई कचरा बीनने वाला दिख जाता है तो उसे पैसे 
दे देते हैं। 
 

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रायपुर और बिलासपुर कलेक्टर के रूप में किए काम आज भी पहचान
मंडल रायपुर और बिलासपुर में कलेक्टर के रुप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और कलेक्टर रहते उन्होंने जो काम इन शहरों में किए वह आज भी लोगों की जुबान पर है। राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट का वर्तमान स्वरुप उन्हीं की देन है। जेल के बीच से बाइपास सड़क, कैनाल लिंकिंग रोड, पुराने मंत्रालय के बीच से सड़क, शास्त्री चौक का चौड़ीकरण जैसे कई उदाहरण हैं जो उनके कार्यों का बखान करने के लिए काफी हैं। मंडल के बारे में एक बात आज भी लोगों को पता है वे रोज मार्किंग वाक के बहाने शहर की नब्ज टटोलते हैं। लोगों की परेशानियों आर जरूरतों के साथ विभागीय लापरवाही को भी पकड़ लेते हैं। कई बार वे सुबह जल रही स्ट्रीट लाइटों को संबंधित विभाग के कर्मचारियों को फोन कर बंद करने को कहते हैं।  

घर नहीं ले जाते त्योहार में मिले मिठाइयों के डिब्बे
मंडल के बारे में यह भी कहा जाता है कि त्योहारों और मुलाकातों के दौरान उन्हें जो भी मिठाइयों के डिब्बे मिलते थे वे उन्हें घर नहीं ले जाते बल्कि झुग्गी बस्तियों में जाकर बांट देते थे। वहीं अपने स्वागत के लिए महंगे बुके और फूल माला लाने पर वे अफसरों पर नाराजगी जताते हुए कहते थे कि यदि इसकी बजाय वे बिस्किट आर मिठाइयां लाते तो गरीबों के काम आता। यह भी कहा जाता है कि वे जब भी दौरे पर निकलते हैं तब अपने साथ बिस्किट के कार्टून लेकर जाते हैं आर गांव में मिलने वाले बच्चों आर ग्रामीणों में बांट देते हैं। 

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