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छत्तीसगढ़ : जिन सुषेण वैद्य ने बचाए थे लक्ष्मण के प्राण, उन्हें श्रीराम ने दिया था अपने ननिहाल में स्थान…

धनतेरस से दीपावली महापर्व की शुरूआत हो जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरह को ही समुद्र मंथन से भगवान धन्वन्तरि निकले थे। इन्‍हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। धन्वन्तरि के प्राकट्य दिवस पर हम मृत संजीवनी विद्या के जानकार सुषेण वैद्य से जुड़ी कहानी बता रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी गांव है। इसे भगवान राम की मां कौशिल्या का जन्म स्थान माना जाता है। इस गांव को औषधि ग्राम या वैद्य चंदखुरी भी कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि यहां सुषेण वैद्य का आश्रम था।

श्रीरामचरित मानस के लंका कांड में सुषेण वैद्य का जिक्र आता है। युद्ध में मेघनाद की शक्ति से श्रीराम के भाई लक्ष्मण अचेत हो गए थे। विभीषण ने राम को बताया कि लंका के राजवैद्य सुषेण लक्ष्मण को बचा सकते हैं। श्रीराम के कहने पर हनुमान जी सुषेण वैद्य को लंका से उनके भवन सहित ले आए थे। लक्ष्मण का परिक्षण करने के बाद सुषेण वैद्य ने उनका उपचार संजीवनी बूटी बताया था। सुषेण के बताए अनुसार हनुमान जी हिमालय से वह पर्वत उठा लाए थे, जिसमें बूटी थी।

सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी से दवा बनाकर लक्ष्मण को पुन: चेतन्य किया था। इसके बाद रामायण में कहीं भी सुषेण वैद्य का जिक्र नहीं आता है। हालांकि उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी। रावण के वध के बाद सुषेन ने श्रीराम से भेंट की और खुद को अपनी शरण में लेने का अनुरोध किया था। श्रीराम सुषेण वैद्य के अनुरोध पर उन्हें अपने साथ ले आए और उन्हें अपनी ननिहाल कौशल राज्य में भेज दिया। सुषेण वैद्य ने अपना शेष जीवन यही बिताया।

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रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में सुषेन वैद्य का मंदिर बना है, जिसमें एक बड़ा पत्थर भी रखा है, ऐसा माना जाता है कि सुषेण वैद्य इसी पत्थर पर बैठा करते थे। मंदिर के पुजारी संतोष चौबे के अनुसार मान्यता है कि सुषेण वैद्य के मंदिर की मिट्‌टी या भभूत लगाने से कई लोगों की बीमारियां ठीक हो चुकी हैं।