छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव मुसुरपुट्टा के लोगों ने अनुकरणीय पहल किया है। यहां बदलते भारत की एक अलग तस्वीर पेश करती दिखती है। गांव के बच्चों में शिक्षा के प्रति लगन पैदा हो और प्रतिस्पर्धा के माध्यम से असफलता को पीछे छोड़ सफलता की उड़ान भरने का जज्बा यहां के विद्यार्थियों में जागे, इसके लिए एक अलग प्रयास किया जा रहा है। गांव वालों ने मिलजुल कर यह अनूठी युक्ति खोजी और तय किया कि गांव का जो भी बच्चा 10वीं और 12वीं की परीक्षा में 80 प्रतिशत से अधिक अंक लाएगा, उसे हवाई जहाज में उड़ान भरने का मौका मिलेगा। साल 2008 से शुरू हुई इस पहल का परिणाम गांव के बच्चों के बेहतर होते रिजल्ट के रूप में सामने आया है। तब से 80 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले बच्चों की संख्या यहां लगातार बढ़ रही है। परीक्षा परिणाम करीब दोगुने बढ़ गए हैं।
गांव वाले अपने वादे पर खरे हैं और हर साल ऐसे सभी बच्चों को हवाईजहाज से मुंबई, दिल्ली, आगरा जैसे चुनिंदा स्थानों तक भ्रमण कराया जा रहा है। टॉपर्स को तो नेपाल और भूटान तक की यात्रा कराते हैं। यह कोई धनाड्यों का गांव नहीं है, वरन साधारण किसान और कुछ नौकरी पेशा परिवारों का गांव है।
मेधावी बच्चों को इन्होंने आपस में चंदा करके हवाई सैर कराने का सिलसिला शुरू किया। पूछने पर कहते हैं, बच्चों का भविष्य तो संवर ही रहा है, शिक्षा से पूरे समाज में आए बड़े बदलाव को भी आप यहां देख सकते हैं।कांकेर जिले के दुधावा स्थित गांव मुसुरपुट्टा की यह पहल समूचे ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ा संदेश भी है।
सरकारी स्कूल में शिक्षण स्तर की शिकायत, शिक्षकों और पुस्तकों की कमी की शिकायत, मिड-डे मील में गुणवत्ता की शिकायत, दाल में गिरते चूहे और कॉकरोच की शिकायत, शालेय गणवेश और जूते न मिल पाने की शिकायत, स्कूल की जर्जर होती भवनों की शिकायत… ज्यादातर गांवों में शिकायतें ही रहती हैं। लेकिन मुसुरपुट्टा के ग्रामीणों ने शिकायतों और नाकामियों को पीछे छोड़ पढ़ने-बढ़ने और उड़ने का प्रभावी संदेश दिया है।
मुसुरपुट्टा के इस जज्बे के पीछे ग्रामीण भारत की उस बेचैनी को भी महसूस किया जा सकता है, जो विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के दशकों पुराने अधूरे सपने से उपजी है। मुसुरपुट्टा इस अधूरे सपने को आंखें खोलकर देखने और पूरा करने का जतन कर रहा है।
बीते 11 साल से इस गांव के बच्चों की हवाई उड़ान का सफर बदस्तूर जारी है। हर साल संख्या बढ़ती जा रही है। मेधावी बच्चों को अब तक दिल्ली, आगरा, मथुरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई जैसे स्थानों का भ्रमण कराया जा चुका है।
बोर्ड की प्रवीण्य सूची में जगह बनाने वाले गांव के बच्चों को तो विदेश यात्रा (नेपाल और भूटान) भी भेजा गया। बच्चों के साथ उनके स्वजन भी हवाई यात्रा करते हैं। इसका खर्च गांव के ही लोग उठाते हैं, जिसके लिए उन्होंने जन्मभूमि प्रकोष्ठ नामक समिति बनाई है।
11 साल में 50 से 92 प्रतिशत पहुंचा परिणाम
गांव की आबादी दो हजार है। इसमें से करीब 100 परिवारों में कोई एक सदस्य सरकारी नौकरी में है, कुछ लोग अन्य काम-धंधा करते हैं, जबकि शेष किसान हैं। गांव में हायर सेकेंडरी स्कूल नहीं है। मीडिल क्लास के बाद बच्चे आसपास के हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। पहले इन स्कूलों में परिणाम प्रतिशत 50 तक सीमित था, लेकिन वर्तमान में यह 80 से 92 प्रतिशत तक जा पहुंचा है।
प्रकोष्ठ के सदस्य अरविंद भारती बताते हैं कि अब हमारा काम आसान हो चला है क्योंकि गांव में सफल और सुशिक्षित पीढ़ी तैयार हो गई है, जो नई पीढ़ी को राह दिखाने में लग गई है। प्रकोष्ठ के संयोजक धनराज मरकाम (डिप्टी कलेक्टर), धनराज भास्कर, भीखम साहू, दीनानाथ नेताम, शिवराज जैसे युवाओं ने बताया कि इस बार (बोर्ड परीक्षा 2019-20) में राज्य की टॉपटेन सूची में जगह बनाने वाले बच्चों को सिंगापुर और स्कूल स्तर पर टॉप करने वाले मेधावियों को विदेश भ्रमण कराया जाएगा।