बस्तर संभाग की दो विधानसभा सीट दंतेवाड़ा और चित्रकोट में उपचुनाव हो गया है। अब राजनीतिक दल नगरीय निकाय चुनावों की तैयारी में पूरी तरह से जुट जाएंगे। हालांकि, कांग्रेस और उसकी सरकार ने पहले से नगरीय निकाय चुनाव की बिसात बिछानी शुरू कर दी है। शहरी क्षेत्रों में मोदी फैक्टर को क्रेक करने के लिए सरकार जो बड़ा दांव खेलने जा रही है, वह महापौर और अध्यक्षों का अप्रत्यक्ष चुनाव है। यह 20 साल पुरानी व्यवस्था है, जिसे फिर से लागू करने की तैयारी हो रही है।
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को 90 में से 68 सीटों पर जीत मिली। 15 साल सत्ता में रहने वाली भाजपा केवल 15 सीटों पर ही सिमटकर रह गई। बम्पर जीत से उत्साहित कांग्रेसी लोकसभा में भी एकतरफा जीत का दावा कर रहे थे, लेकिन केवल दो सीटों से संतुष्ट होना पड़ा था।
कांग्रेस और उसकी सरकार को इस बात की चिंता होने लगी कि कहीं नगरीय निकाय चुनाव में भी मोदी फैक्टर और राष्ट्रवाद चला तो कांग्रेस को नुकसान हो जाएगा। तब, राज्य सरकार ने महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता से न कराने का विचार शुरू किया।
मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई गई, जिसने महापौर और अध्यक्षों का चुनाव पार्षदों के बीच से कराने की अनुशंसा कर दी है। जल्द ही कैबिनेट की उस पर मुहर लग जाएगी। जनता केवल पार्षद चुनेगी। कांग्रेस और सरकार का मानना है कि पार्षद चुनाव में मोदी फैक्टर नहीं चलेगा, क्योंकि मतदाता आपसी संबंध और सक्रियता को ध्यान में रखकर पार्षद प्रत्याशी को वोट करता है। उसे वार्ड चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से मतलब नहीं होता है।
कांग्रेस की दो और रणनीति
– भाजपा राम के साथ गांधी का नाम अलापने लगी है, तो कांग्रेस ने भी गांधी के साथ छत्तीसगढ़ के राम का राग छेड़ दिया है।
– भाजपा के राष्ट्रवाद को गोडसे और कांग्रेस अपने राष्ट्रवाद को गांधी की विचारधारा से जोड़कर प्रचारित करने में लग गई है।
वार्ड स्तर पर चल रहा है सर्वे
अप्रत्यक्ष चुनाव में पार्षद प्रत्याशी फाइनल करने में ज्यादा मशक्कत करनी होगी। इसका कारण यह है कि जिस दल के पार्षद ज्यादा होंगे, उन्हीं में से महापौर और अध्यक्ष का चुनाव होगा। कांग्रेस ने वार्ड स्तर पर सर्वे शुरू करा दिया है, इसलिए दावेदारों के फ्लैक्स नजर आने लगे हैं।