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चाणक्य नीति: इन लोगों से हमेशा रहना चाहिए दूर, बनती हैं दुख का कारण

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, नीति ज्ञान। आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में व्यक्ति के व्यवहार और स्वभाव के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, इस बारे में हर किसी को जानना चाहिए।

आचार्य चाणक्य का संदेश

  • मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च ।
  • दु:खितै: सम्प्रयोगेण पंडितोप्यवसीदति ।।

अर्थात्- मूर्ख शिष्य को उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण करने से तथा दुखी लोगों के साथ रहने से पंडित-विद्वान व्यक्ति भी दुखी हो जाता है।

Chanakya Niti: इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य का संदेश

अच्छे भले मनुष्य को किन बातों से दुख उठाना पड़ सकता है। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि जो शिष्य लाख समझाने, शिक्षा देने के बाद भी मूर्ख का मूर्ख ही रहे, जिसे ज्ञान की बातें समझ में न आए, जो शिष्य ज्ञान का उपहास करता हो वह मूर्ख होता है और उसे शिक्षा देने का अर्थ है स्वयं को ही दुखी करना। कुछ लोग जड़मति होते हैं, जो माता-पिता या अन्य स्वजन के दबाव में आकर शिक्षा ग्रहण करने तो पहुंच जाते हैं किंतु उनका मन नहीं लगता। वे न तो शिक्षक की बात ध्यान से सुनते हैं और न उस पर अमल करते हैं। आज के संदर्भ में देखा जाए तो हमें स्कूल-कालेजों में ऐसे अनेक छात्र मिल जाएंगे जो केवल मटरगश्ती करने जाते हैं और स्कूल-कालेज में जाकर दूसरे छात्रों और शिक्षकों का सिरदर्द बनते हैं।

दुखी मनुष्यों की सेवा करना मनुष्य का धर्म है

आचार्य चाणक्य ने श्लोक में दूसरी बात स्त्रियों के संदर्भ में कही है। दुष्टास्त्रीभरणेन च- अर्थात् जिस स्त्री का ध्यान परिवार में रहते हुए भी परिवार के सुख-दुख पर नहीं रहता, जो स्त्री मात्र अपने बारे में सोचती है, जिसे पति, बच्चों, सास-ससुर, स्वयं के माता-पिता, भाई-बहनों से कोई मोह नहीं उससे दूर ही रहना चाहिए। ऐसी स्त्री त्यागने योग्य होती है। तीसरी बात दुखी लोगों के संदर्भ में कही है।

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आचार्य के कहने का तात्पर्य है कि दुखी मनुष्यों की सेवा करना मनुष्य का धर्म है किंतु यह मनोभाव है कि जब व्यक्ति दुखी लोगों के मध्य में ही रहने लग जाता है तो उसका स्वभाव भी भीतर से दुखी हो जाता है। उसे चारों ओर दुख ही दुख दिखाई देता है।

त्यागना ही श्रेष्ठ रहता है…

अत: जिन लोगों के जीवन का उद्देश्य कुछ अलग है। जो राज सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं, जिन्हें जीवन में ऊंचाइयां प्राप्त करनी है, उन्हें उपरोक्त बातों में एक सीमा तक ही रहना है, उसके बाद उन्हें त्यागना ही श्रेष्ठ रहता है वरना वे आपको भी दुखी कर देंगे।