क्रिसमस के तुरंत बाद पृथ्वी पर मंडराता खतरा निरंतर हो रही है इसकी निगरानी क्रिसमस के तुरंत बाद पृथ्वी पर मंडराता खतरा…
क्रिसमस के ठीक एक दिन बाद पृथ्वी पर आसन्न संकट को लेकर वैज्ञानिक सतर्क हैं।
यूं तो पहले की जानकारी के मुताबिक इस खतरे की बहुत कम संभावना है। लेकिन पूर्व अनुभवों
के आधार पर वैज्ञानिकों ने पहले से ही इस बार सावधानी बरती है। यह खतरा एक दैत्याकार
उल्कापिंड के पृथ्वी के काफी करीब से गुजरने की वजह से है। आकार में यह करीब 620 मीटर
लंबा है। क्रिसमस के ठीक एक दिन बाद 26 दिसंबर की सुबह आठ बजे के पहले ही यह पृथ्वी के
सबसे करीब होगा।
खगोल वैज्ञानिकों का मानना है कि इस उल्कापिंड से पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है। लेकिन कई बार बड़े
आकार के उल्कापिंडों के काफी करीब से गुजरने की वजह से ही वायुमंडल में उथल पुथल का प्रभाव
आता है। हाल के दिनों में पूर्वानुमान को गलत बताते हुए एक उल्कापिंड के अचानक पृथ्वी पर आ
गिरने की वजह से अब वैज्ञानिक अपनी पूर्व गणना को सही मानकर निश्चिंत नहीं बैठे हुए हैं। इस
उल्कापिंड की हर गतिविधि पर चौबीसों घंटे नजर रखी जा रही है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जो उल्कापिंड पृथ्वी के करीब से गुजरेगा वह सीएच 59 है। यह आकार के लिहाज से
काफी बड़ा उल्कापिंड है। वर्तमान में इसकी गति करीब 27,450 मील प्रति घंटे की है। इसलिए इसके आकार
और गति की वजह से यह पृथ्वी के लिए एक बड़ा खतरा है।
इस आकार के उल्कापिंड जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो घर्षण से उनमें आग लगने के बाद भी
उनका काफी बड़ा हिस्सा पृथ्वी पर आ गिरता है। तेज गति से पृथ्वी पर गिरने की वजह से पूरी दुनिया में
इसके गिरने का झटका महसूस किया जाता है।
क्रिसमस के अगले दिन सुबह जो उल्कापिंड हमारे पास से गुजरने वाला है, वह आकार में चीन के
कैंटर टावर अथवा शिकागो अमेरिका के सियर्स टावर से भी बड़ा है। लिहाजा यह पृथ्वी पर झटका
देने के लिहाज से बड़े आकार का माना जा रहा है। लेकिन वर्तमान में उसके पृथ्वी पर आ गिरने की कोई
संभावना नहीं होने के बाद भी वैज्ञानिक एहतियात बरत रहे हैं।
पूर्व के वैज्ञानिक शोध का निष्कर्ष यही है कि इस आकार का उल्कापिंड भी अगर पृथ्वी पर आ गिरा
तो इसके प्रभाव से लाखों लोगों की जान जा सकती है। इस बारे में पहले से प्रकाशित एक वैज्ञानिक
रिपोर्ट, जिसे व्हाइट हाउस रिपोर्ट कहा जाता है, में इसकी व्याख्या की गयी है। इस रिपोर्ट में यह
बताया गया है कि 400 मीटर से बड़े आकार का कोई भी उल्कापिंड पृथ्वी पर कई महाद्वीपों तक पर
प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
डेढ़ किलोमीटर से बड़े आकार का उल्कापिंड अगर पृथ्वी पर गिरा तो महाप्रलय की स्थिति उत्पन्न होगी।
पूर्व में भी कई बार पृथ्वी पर ऐसे विशाल उल्कापिंड गिरे हैं। इनमें से एक के गिरने की वजह से ही पृथ्वी पर
से डायनासोर जैसे विशाल और भयानक प्राणियों का जीवन एक ही झटके में समाप्त हो गया था।
काफी समय से वैज्ञानिक इस किस्म के सौर खतरों पर शोध कर रहे हैं। इसके तहत आने वाले खतरों को
दो श्रेणियों में बांट रखा गया है। पहला तो एनइओ श्रेणी के हैं। यानी पृथ्वी के करीब से चक्कर काटने वाले
पत्थरों को इन टुकडों को नियर अर्थ आब्जेक्ट की श्रेणी में रखा गया है। दूसरी श्रेणी पीएचए की है, यानी
पोटेंशियली हार्जाड्स एस्ट्रोयड। आम तौर पर छोटे आकार के उल्कापिंडों से गिरने से पृथ्वी को कोई खतरा
नही होता। क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही वे घर्षण की वजह से जलने लगते हैं। पृथ्वी की
सतह तक पहुंचने के पहले ही वे टूटकर छोटे छोटे टुकड़ों में विखंडित हो जाते हैं। थोड़ा सा आकार बड़ा होने
पर कुछ खतरा होता है। लेकिन आकार में बड़े होने वाले उल्कापिंड नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं।
अभी जिस उल्कापिंड पर नजर रखी जा रही है, उसकी हर गतिविधि को नासा का खास केंद्र देख रहा है।
नासा के इस केंद्र के मुताबिक इस पत्थऱ का आकार दो हजार फीट लंबा और करीब 918 फीट चौड़ा है।
वर्तमान में यह 12.27 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। उसकी दिशा और अन्य
तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक यह मानते हैं कि उसके पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन
अंतरिक्ष विज्ञान की दृष्टि से वह पृथ्वी के काफी करीब से गुजरने वाला है।