अनादि न्यूज़

सबसे आगे सबसे तेज

समाचार

शी जिनपिंग से मुलाकात के लिए पीएम मोदी ने महाबलीपुरम को क्यों चुना? इस शहर का चीन से क्या है रिश्ता?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले हफ्ते भारत दौरे पर आ रहे हैं. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की तमिलनाडु के शहर महाबलीपुरम में मुलाकात होगी. पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को महाबलीपुरम की यात्रा करवाएंगे. पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच होने वाली यह मुलाकात अनौपचारिक होगी. दोनों नेता 11 और 12 अक्टूबर को मुलाकात करेंगे.

शी जिनपिंग के भारत दौरे के बीच ये सवाल उठ रहा है कि प्रधानमंत्री ने मुलाकात के लिए महाबलीपुरम शहर को क्यों चुना? आखिर महाबलीपुरम में पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति को क्या दिखाना चाहते हैं और ये मुलाकात दोनों देशों के लिए कितनी अहम रहने वाली है?

महाबलीपुरम का है चीन से गहरा रिश्ता
महाबलीपुरम तमिलनाडु के प्राचीन शहरों में से एक है. चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर महाबलीपुरम से चीन का गहरा रिश्ता रहा है. इसीलिए दोनों नेताओं के बीच मुलाकात के लिए इस शहर को चुना गया है. पुराने जमाने में महाबलीपुरम के चीन से व्यापारिक संबंध थे. उन्हीं संबंधों की याद दिलाने के लिए शी जिनपिंग और पीएम मोदी की मुलाकात इस शहर में होने वाली है. महाबलीपुरम तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा शहर है. महाबलीपुरम को सातवीं सदी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने बसाया था. राजा नरसिंह देव बर्मन को उस इलाके में मामल्लपुरम भी कहा जाता है इसलिए महाबलीपुरम का एक और नाम मामल्लपुरम भी है. इतिहास में इस शहर का एक और नाम बाणपुर भी है.

चीन से थे रक्षा संबंध
प्राचीन काल में तमिलनाडु के शहर महाबलीपुरम का चीन के साथ रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में गहरा रिश्ता रहा है. महाबलीपुरम और चीन के बीच 1700 साल पुराने संबंध हैं. पल्लव वंश के शासकों और चीन के बीच पुराने रक्षा संबंध रहे हैं. चीन ने तिब्बत से लगती सीमा को सुरक्षित रखने के लिए पल्लव वंश के राजाओं के साथ पैक्ट तक किए थे.

See also  टाईट जींस पहनने की वजह से एक शख्स की जान पड़ी जोखीम में जरुर पढ़े...

महाबलीपुरम को बंगाल की खाड़ी के किनारे बिजनेस हब की तरह विकसित किया गया था. यहां के बंदरगाह से चीन से सामान आयात और निर्यात किया जाता था. महाबलीपुरम का चीन के साथ सदियों तक व्यापारिक संबंध रहे. ये संबंध एक हजार साल पहले तक कायम थे.

इतिहासकार बताते हैं आठवीं शताब्दी में चीन के राजा और पल्लव वंश के शासक राजा सिम्हन 2, जिन्हें नरसिम्हन 2 भी कहा जाता था, के साथ पहली बार रक्षा के क्षेत्र में स्ट्रैटजिक पैक्ट हुआ था. नरसिम्हन 2 पल्लव वंश के सबसे दमदार शासकों में से थे. चीन के राजा के ऊपर नरसिम्हन 2 का इतना प्रभाव था कि चीन ने उन्हें तिब्बत की सीमा से लगते दक्षिणी चीन का जनरल नियुक्त कर दिया था.

पल्लव वंश के राजा के सामने चीन ने टेक दिए थे घुटने
चीन ने ये कदम अपने आप को बचाने के लिए उठाया था. चीन ने अपना एक प्रतिनिधिमंडल राजा नरसिम्हन 2 के पास भेजा था. प्रतिनिधिमंडल के पास सिल्क के कपड़े पर लिखा राजा का पत्र था, जिसमें उन्हें दक्षिणी चीन का जनरल नियुक्त करने की बात लिखी थी.

पल्लव राजा के तीसरे राजकुमार बोधिधर्म बौद्ध भिक्षु बन गए थे. वो चीन में एक आयकॉन थे. उन्होंने 527 AD में कांचीपुरम से महाबलीपुरम होते हुए चीन की यात्रा की थी. बोधिधर्म बौद्ध धर्म के 28वें पितृपुरुष बने. पूरे चीन में इनकी जबरदस्त लोकप्रियता रही थी.

इसे देखते हुए टूरिज्म डिपार्टमेंट ने उस रूट को फिर से बनाने की बात कही है, जिसपर चलकर बोधिधर्म चीन पहुंचे थे. टूरिज्म डिपार्टमेंट का कहना है कि इस रूट के बन जाने से चीन, जापान और थाईलैंड के हजारों टूरिस्ट तमिलानडु आ पाएंगे.

See also  इस खबर से पाक पीएम इमरान की उड़ जाएगी नींद, कल हिंदुस्तान में ESRO करने जा रहा वो काम!

लंबे वक्त तक चला तमिलनाडु का चीन के साथ संबंध
इतिहासकार बताते हैं कि पल्लव वंश के साथ शुरु हुआ चीन के साथ रिश्ता चोल वंश तक चला. दक्षिण एशियाई देशों के साथ तमिलनाडू के दूसरे बंदरगाहों से भी आयात निर्यात होता था. इसमें नागापट्टिनम और तंजोर के बंदरगाह अहम हैं.

7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग भारत आया था. पल्लव वंश के राज में वो कांचीपुरम पहुंचा था. उस वक्त चीन और तमिलनाडु, दोनों के प्रतिनिधिमंडल एकदूसरे के यहां आया-जाया करते थे. महाबलीपुरम एक केंद्र के तौर पर विकसित था.

भारतीय पुरातत्व विभाग को महाबलीपुरम में रिसर्च के दौरान चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के मिले हैं. चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर महाबलीपुरम में काफी साक्ष्य मिलते हैं. सातवीं और आठवीं सदी में पल्लव राजाओं ने यहां बड़ी संख्या में मंदिर बनाए थे. अधिकतर शैव परंपरा के मंदिर हैं, जो आज भी मौजूद हैं. एतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि यहां से लोग मलाया, इंडोनेशिया और कंबोडिया में जाकर बसे और वहां उपनिवेशों की स्थापना की.