रायपुर। कुछ लोग अपने मजबूत इरादों से अपनी तकदीर लिखते हैं। ऐसे लोगों में से एक कोण्डागांव के मर्दापाल के निकट बसे नक्सलप्रभावित गांव बादालूर की दिव्यांग एवन्ती विश्वकर्मा भी हैं। बोलने और सुनने में असमर्थ एवंती ने अपनी मेहनत से अपने स्वावलंबन की राह तय की है। अब वह सिलाई सीख कर अपने पैरो पर खड़ी हो गई हैं। राज्य सरकार द्वारा संचालित गारमेंट फैक्टरी में काम कर उसने अपनी दिव्यांगता को भी मात दे दी है।
एवन्ती के पिता मंगू विश्वकर्मा बताते हैं कि 20 वर्षीय एवन्ती बचपन से ही सुन-बोल नहीं पाती है, इसके कारण उसकी शिक्षा बहुत कठिन हो गई थी। एवन्ती ने अपनी शारीरिक कमी को कभी खुद पर हावी होने नहीं दिया। वह हमेशा खुश रहा करती थी।
एवन्ती की आंखों में हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने का सपना रहता था। एवन्ती ने दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने अपने परिजनों एवं शिक्षकों से आत्मनिर्भर बनने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने एवन्ती को कलेक्टर जनदर्शन में जाकर रोजगार के लिए निवेदन करने की सलाह दी। एवन्ती के अक्टूबर 2021 में आवेदन करने पर कलेक्टर पुष्पेन्द्र कुमार मीणा ने आजीविका मिशन के सहायक परियोजना अधिकारी पुनेश्वर वर्मा को उसे गारमेंट फैक्ट्री में कार्य करवाने के निर्देश दिये।
पुनेश्वर वर्मा ने बताया कि गारमेंट फैक्ट्री खुलते ही एवन्ती से सम्पर्क कर उसे क्वालिटी टेस्टिंग के साथ स्टीचिंग का प्रशिक्षण दिया गया। सबसे बड़ी समस्या एवन्ती के सुनने एवं बोलने की दिक्कत के कारण थी। ऐसे में फैक्ट्री की अन्य लड़कियों और ट्रेनरों का उसे पूरा सहयोग किया। वह रोज सुबह घर का काम कर फैक्ट्री जाया करती हैं। धीरे-धीरे वह अपने काम में प्रवीण होती गई। जिला प्रशासन द्वारा आजीविका कॉलेज के छात्रावास में उसके निःशुल्क रहने का प्रबंध किया जा रहा हैै। एवन्ती के परिजनों ने कहा एवन्ती को अपने पैरों पर खड़ा देख के उन्हें फक्र महसूस होता है। वे उसकी हौसला अफजाई जरूर करते रहते हैं। दिक्कतों के बाद भी एवन्ती हमेशा मुस्कुराते रहती हैं।
एवन्ती को काम करते देखकर भविष्य में 30 से 40 दिव्यांग बालिकाओं, 30 विधवा और परित्यक्ता महिलाओं को प्रशिक्षण देकर फैक्ट्री में काम देने की पहल की जा रही हैं। वर्तमान में 150 से अधिक लड़कियां फैक्ट्री में कार्य कर रहीं हैं। उनके द्वारा विख्यात कम्पनी डिक्सी स्कॉट के कपड़ों का निर्माण किया जा रहा है। अब तक उनके द्वारा एक करोड़ रूपये के कुल 01 लाख कपड़ों का निर्माण किया जा चुका है।