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छत्तीसगढ़ – प्रदेश में पार्षद ही चुनेंगे मेयर और अध्यक्ष; सीएम भूपेश ने बनाई तीन मंत्रियों की कमेटी…

अब छत्तीसगढ़ में पार्षद ही महापौर, पालिकाध्यक्ष तथा नपं अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। चुनाव प्रक्रिया में बदलाव के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीन मंत्रियों की उपसमिति गठित कर दी है। मंत्रिमंडलीय उपसमिति 15 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। समिति की अनुशंसा के आधार पर फैसला लिया जाएगा।


22 अगस्त को आैर एक दिन पहले ही इस संबंध में खबर प्रकाशित की थी। सीएम बघेल ने इस खबर पर लगभग मुहर लगा दी है, लेकिन अंतिम निर्णय तीन मंत्रियों रविन्द्र चौबे, मोहम्मद अकबर आैर शिव डहरिया की उपसमिति की रिपोर्ट के बाद ही हो पाएगा। खबर है कि सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के बीच इस मामले में प्रारंभिक चर्चा हो चुकी है। सीएम भूपेश, महापौर अथवा अध्यक्ष के सीधे निर्वाचन प्रक्रिया को बदलने के संकेत पहले ही दे चुके हैं। अब मंत्रियों की समिति की रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट में इस पर फैसला लिया जाएगा। इसके बाद प्रदेश सरकार अध्यादेश लाएगी। गौरतलब है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में 1994 में महापौर-अध्यक्षों का निर्वाचन पार्षदों के जरिए होता था। इसके बाद व्यवस्था बदली और फिर 1999 में महापौर और अध्यक्ष के सीधे चुनाव होने लगे।

इस तरह के चुनाव में कोई खराबी नहीं : अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में कोई खराबी नहीं है। जिला पंचायत में इसी तरह से चुनाव होते हैं। इसके लिए तीन मंत्रियों की मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की है। – भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री
 

कांग्रेस को हार का डर सता रहा है : इस फैसले के द्वारा कांग्रेस सत्ता का दुरुपयोग करेगी। यह जनता के निर्णय को बदलने की साजिश है। कांग्रेस पीछे के दरवाजे से महापौर बनाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस को पराजय का डर है, इसके बाद भी लड़ाई तो हम लड़ेंगे।-डॉ. रमन सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री

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सर्वे की हकीकत जानने बनाई कमेटी : प्रदेश सरकार के पास एक सर्वे रिपोर्ट आई है, जिसमें यह कहा गया है कि गांव के लोग तो सरकार से खुश हैं, लेकिन शहरी मतदाताआें में नाराजगी है। इसी रिपोर्ट की हकीकत जानने के लिए तीन मंत्रियों की कमेटी बनाई गई है। हाल ही में सरकार के कुछ चुनिंदा मंत्रियों के बीच सीएम हाउस में हुई बैठक में ही यह तय किया गया है कि इस बार चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से की जाएगी। 


यह होगा असर : अप्रत्यक्ष तरीके से चुनाव होने पर यदि पार्षदों की संख्या में ज्यादा अंतर हुआ तो आसानी से मेयर या अध्यक्ष चुन िलया जाएगा। लेकिन यदि पार्षदों की संख्या का अंतर कम हुआ तो धनबल आैर बाहुबल का जोर भी चल सकता है। इससे कथित खरीद-फरोख्त की राजनीति को भी बढ़ावा मिलने की आशंका है।